कुर्सी को अब भजले मन ! ये जग है पराया ! (कविता ) -प्रसिद्ध यादव।

   



कुर्सी ही साथ जाएगी 

बाकी सब है माया !

जो न पहचाना कुर्सी को 

वो  हैं बड़े अभागे !

कुर्सी के लिए नओ  बार

 विधवा होकर 

होनी पड़े सुहागन 

फिर भी ये  है कम 

कह गया धर्म पुराण !

कुर्सी है तो सर पे  है ताज !

इसी से होता सब काज !

इसी से चलता शासन राज ! 

जो करे इसकी निंदा 

वो कभी न होय नेता ! 

कुर्सी सब को प्यारी है 

जिसे नसीब नहीं हुआ 

वो किस्मत के मारी है ।

छल कपट ये गुण हैं इसके 

जो अपना लिया वो नेता हैं ।

जो मीन मेख निकाला इसमें 

वो नाक के नेटा है ।

जय बोलो कुर्सी की 

जय हो ! इसकी शोभा बढ़ाने वाले की।

कुर्सी की महिमा जो कोई गावे 

कम से कम जरूर चापलूस बन जाये ।

कुर्सी की शोभा बड़ी न्यारी 

अति सुंदर बड़ी प्यारी !

कुर्सी को गले लगाओ 

भव सागर से पार हो जाओ।

कुर्सी को अब भजले मन 

ये जग है पराया !

 


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