राजनीति की रस्साकस्सी में रस्सी टूट की कगार पर ! - प्रसिद्ध यादव।
गुलाटी मारना व पहचानना बच्चे भी जानते हैं, नहीं कोई जानता है तो बुजुर्ग!
लोकतंत्र में न चाल चरित्र ,न विचारों का कोई मायने हैं।सिर्फ कुर्सी देव सुरक्षित रहे इसी की आराधना होती है।इस बार बिहार में सत्ता की रस्सी टूटी तो रस्सी तोड़ने वाले रसातल में होंगें। जिनके आगोश में जाने की तैयारी है वो कुछ अलग पटकथा लिख रहा है।सवाल किसी की पगड़ी की है, स्वप्न का है। राजनीति में जब किसी प्रश्न का उत्तर न में हो तो उसे हाँ समझना चाहिए और हाँ हो तो वो ना होता है। बॉडी लैंग्वेज बहुत कुछ कह देता है। कर्पूरी जयन्ती के ही दिन रस्सी टूटने की आवाज़ आई थी लेकिन ये सामान्य घटना लग रही थी।मीडिया में ये बात कुछ दिन पहले आई तो आल इज वेल कह कर आग पर पानी डालने का प्रयास हुआ। रस्सी तोड़ने वाले के चरित्र से बच्चा -बच्चा वाकिफ़ है लेकिन नहीं समझे तो भाजपा और राजद ।ये भी समझते हैं लेकिन सत्ता मोह जो न करवा दे। दोनों बड़ी पार्टी के नेता रस्सी खिंचवा से देह में दर्द करवाया । दे दनादन ..। सौदा हो गया है ,गड़बड़ मालिकाना हक पर है। हो सकता है विधानसभा भंग हो जाये ।ये भाजपा की चाहत है कि हिसाब किताब इस बार बराबर हो जाये ,लेकिन जदयू ये नहीं चाह रही है, इसे किसी कीमत पर मालिकाना हक चाहिए। दूसरा विकल्प भाजपा की हो सकती है कि लोकसभा चुनाव में जदयू को साथ लेकर इसे मालिकाना हक दे दे ,लेकिन चुनाव खत्म होते इन्हें बेदखल कर दे।भाजपा बिहार में जदयू को मालिक का नहीं झेल सकता है। राजद क्या करेगा ? चिराग या पारस ,मांझी ,कुशवाहा, साहनी इनके साथ हों। ओवैसी को भी राजद साथ ले सकती है लेफ्ट कॉंग्रेस साथ पहले से ही है।सवाल है कि लोकसभा में कौन किसे चुनौती दे सकता है? ये जनता की मूड पर निर्भर है लेकिन भाजपा लम्बी लकीर खिंच ली है, बाकी अभी निंद्रा में है।
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