धर्मान्धों ने महामानव बापू की हत्या कर दी थी ! शत- शत नमन!

 



धर्म का ज़हर जब देश समाज में फैल जाता है तो आदमी सनकी हो जाता है, उसे अच्छा, बुरा का फर्क मिट जाता है। राजनीतिज्ञों द्वारा  धार्मिक कट्टरता जानबूझकर फैलाई जाती है ताकी नफरत की बीज में राजनीति फसल लहलहाए ! इसी धर्मांधता के शिकार सत्य -अहिंसा के पुजारी महामानव की हत्या कर दी गई थी । सभी लोग जो गांधी की हत्या में शामिल थे, स्वभाव में बहुत अलग-अलग थे. पर उन सबके अंदर एक बात बिल्कुल एक जैसी थी. सारे ही धर्मांध थे. एक औरतों से नफरत करने वाला रोगी  नाथूराम गोडसे , एक जिंदादिल पर व्याभिचारी  नारायण दत्तात्रेय आप्टे , एक अनाथ फुटपाथ पर रहने वाला बदमाश लड़का जिसने कट्टर बनकर खुद को बड़ा आदमी बनाना चाहा, एक धूर्त हथियारों का व्यापारी  दंडवते और उसका नौकर, एक बेघर शरणार्थी जो बदला लेना चाहता था मदनलाल पाहवा , एक भाई जो अपने भाई को हीरो की तरह मानकर पूजता था  गोपाल गोडसे  और एक डॉक्टर जिसका बचाने से ज्यादा मारने में विश्वास था डॉ. दत्तात्रेय सदाशिव परचुरे । इनका हथियार था एक बंदूक. जो कि गांधी के हत्यारे के हाथ में पहुंचने से पहले तीन महाद्वीपों में घूम चुकी थी।
गांधी जी की सच्ची प्रतिबद्धता ही इन्हें महामानव बना दिया ,जो प्रेरणा स्रोत है।सिर्फ प्रतिबद्धता से इस दुनिया में अद्भुत चीज़ें की जा सकती हैं। महात्मा गांधी इस बात का एक सच्चा उदाहरण हैं। अगर आप इन्हें ध्यान से देखेंगे तो आप पाएंगे, कि इनमें कोई विशेष प्रतिभा नहीं थी। वे असाधारण प्रतिभा के धनी नहीं थे। वे कोई बहुत अच्छे वकील भी नहीं थे। वे दक्षिण अफ्रीका गए। वहां भी वे बहुत ज्यादा कामयाब नहीं थे। लेकिन, अचानक वे किसी चीज़ के प्रति प्रतिबद्ध हो गए। वे इतने ज्यादा प्रतिबद्ध हो गए कि वे एक महामानव बन गए। जीवन की सिर्फ एक घटना से उनकी सारी पहचान बदल गई। मोहनदास गांधी से महात्मा गांधी तक के उनके सफर में उनकी अपने उद्देश्य के लिए प्रतिबद्धता सबसे महत्वपूर्ण थी।  वे साउथ अफ्रीका आजीविका के लिए गए थे। एक दिन उन्होंने एक फर्स्ट क्लास ट्रेन टिकट खरीदी और ट्रेन से कुछ दूर तक का सफ़र तय किया। लेकिन, उन्हें भूरी चमड़ी वाला न होने के कारण डिब्बे से धक्का देकर निकाल दिया गया। वे सोचने लगे, \"मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ? मैंने फर्स्ट क्लास टिकट खरीदी थी। मुझे ट्रेन से बाहर क्यों फेंक दिया गया?\" इसी पल उन्होंने लोगों की परेशानियों से खुद को एकाकार कर लिया। उससे पहले तक, रोजी-रोटी, कानून और पैसा कमाना उनके लिए महत्वपूर्ण थे। लेकिन, अब उन्होंने खुद को एक ज्यादा बड़ी समस्या से जोड़ लिया। उन्होंने अपनी पुरानी पहचान छोड़कर एक बड़ी पहचान अपना ली।
गांधी ने लाखों लोगों को बिना किसी बड़े प्रयत्न के प्रेरित कर दिया। तब भारत में बहुत से नेता थे, जो अपनी साख रखते थे। वे सभी ज्यादा प्रतिभावान, ज्यादा अच्छे वक्ता और ज्यादा पढ़े-लिखे थे। फिर भी महात्मा गांधी, उन सबसे आगे निकल गए, बस अपनी प्रतिबद्धता की वजह से।
तो प्रतिबद्धता ऐसी चीज़ है जो हमें खुद ही अपने भीतर लानी होगी। चाहे जो कुछ भी हो, जीवन या मृत्यु, आपकी प्रतिबद्धता नहीं बदलनी चाहिए। अगर आप सचमुच प्रतिबद्ध हैं, तो आप जो भी करेंगे उसमें अपना सम्पूर्ण योगदान देंगे। किसी प्रतिबद्ध व्यक्ति के लिए हार जैसी कोई चीज़ नहीं होती। आज राजनीति में प्रतिबद्धता दूर दूर तक दिखाई नहीं देती है।नतीजा, राजनीति में नैतिकता, आचरण का क्षरण हो रहा है।

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