दलबदल! निर्लज्जता व जनता के साथ धोखा !

  


जिस तरह से नेताओं के चाल चलन बदल रहे हैं और अवसर देखकर पाला बदल रहे हैं तो क्या ऐसे लोग जनता के विश्वासी कभी होंगें? जनता किसी को जनप्रतिनिधि दलगत विचारों के आधार पर चुनती है लेकिन दलबदल करने से विचारों को ठेस पहुंचती है। अब चुनाव में दलबदल कर रहे कुकुरमुत्ते को देखते हुए चुनाव आयोग को शपथ पत्र लेना चाहिए कि वो दलबदल करेगा या नहीं ताकि जनता यह सब सोच समझकर वोट देगी। कोई भी उम्मीदवार अगर दलबदल करने की घोषणा करेंगे तो सम्भवतः उनकी जीत की संभावना कम होगी ।चाहे वो किसी भी दल के क्यों न हो! कुछ भय से, कुछ विधानसभा से लोकसभा जाने के जुगाड़ में तो कुछ धन प्रलोभन के कारण अपनी ज़मीर बेच रहे हैं. जनता की भावनाओं से क्या लेना देना है. अब जन आकांक्षा की नही अपने नफा नुकसान की राजनीति हो रहा है।  

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