कितना बेवस ,लाचार है किसान ! ( कविता ) -प्रसिद्ध यादव )
कहने को तो देश के आन - बान -शान है ।
जय जवान !जय किसान !
कितना बेवस ,लाचार है किसान !
अपनी मेहनत का हक मांगता
नहीं किसी से भीख मांगता ।
सरकारी वादे को याद दिलाता ।
क्यों निष्ठुर सरकार इसके राहों में
कांटे कील ठोकता
ड्रोन से आंसू गैस छोड़ता ?
कितना बेवस ,लाचार है किसान !
जब डालते हो मुँह में निवाला
उस वक्त याद करना अन्नदाता
दशा देखकर उनकी कांप उठेगी रूह !
कितना बेवस ,लाचार है किसान !
जिसकी बीमारियों में, बिटिया की ब्याह में
बिक जाती है जमीन -जायदाद !
न ठीक से कपड़े तन पर , रूखा सूखा खानपान
अभावग्रस्त जीवन यही है पहचान !
कितना बेवस ,लाचार है किसान !
किसानों का हाय मत लो !
ये प्रकृति के साधु हैं
इनकी भृकुटि टेढ़ी हुई तो
सत्ता क्या है ?
सत्तासीन रसातल में चले जाते हैं ।
यारों के लिए सब सम्भव है
किसानों के लिए सम्भव भी असम्भव लगता है?
इसकी ताकत से कोई पार न पाया है
फिर जुमले वाले क्या डराएंगे?
इनके लिए जीना क्या ?मरना क्या ?
सब है एक समान !
कितना बेवस ,लाचार है किसान !
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