फ़िल्म 'लापता लेडीज ' नई नवेली दुल्हन की अदला बदली की कहानी-प्रसिद्ध यादव।
जब हमारे यहां घूंघट प्र
था थी और शादी से पूर्व दुल्हा दुल्हन की चेहरे तक नहीं देख पाता था।ऐसे में दुल्हन को पहचानने का सवाल ही कहाँ से होता। ये वास्तविक घटनाओं पर आधारित है।खासकर भोजपुर क्षेत्रों में ऐसी घटनाएं घट चुकी थीं। यह घटना अक्सर भीड़भाड़ में ट्रेन में चढ़ने के क्रम में होती थी । दुल्हन की चादर प्रायः एक ही रंग की होती है लाल चादर,पहनावा ओढावा भी एक तरह के होते हैं। रंग रूप तो दिखाई ही नहीं पड़ता है।ऐसे में ऐसी घटनाएं होना लाज़मी है। उस वक्त महिलाओं में शिक्षा का भी घोर अभाव थी । इतना होने के बावजूद भी महिलाओं की पतिव्रता धर्म सुरक्षित रहती थी। आमिर खान परफेक्शनिस्ट हैं ये हम सब जानते हैं, वो अपनी फिल्मों में जान लगा देते हैं, सालों देते हैं, और अब यही काम उनके प्रोडक्शन में भी हो रहा है, आमिर खान प्रोडक्शन की फिल्म लापता लेडीज में आमिर खान का टच साफ नजर आता है, डायरेक्टर किरण राव ने वैसा ही मैजिक क्रिएट किया है जिसके लिए आमिर जाने जातें हैं वो भी बिना बड़े सितारों, बड़े सेट, महंगे कॉस्ट्यूम के बिना किरण ने दिखा दिया है कि उन्होंने आमिर से परफेक्शन बड़े अच्छे से सीखी है और वो बॉलीवुड में और बहुत कुछ बड़ा और बेहतरीन कर सकती हैं।
1 ट्रेन में 2 ऐसे जोड़े चढ़ते हैं जिनकी अभी अभी शादी हुई है. दोनों दुल्हनों के चेहरे पर बड़ा सा घूंघट है. ट्रेन से उतरने की जल्दी में ये दोनो कैसे लापता हो जाती हैं और फिर क्या होता है यही कहानी है. ट्रेलर से कहानी का अंदाजा ज्यादा लगा नहीं और हम भी बताएंगे नहीं क्योंकि ऐसी फिल्मों के लिए सिनेमा हॉल जरूर जाइए.
ये ऐसी फिल्म है जो ये बताती है कि अगर कहानी को सही तरीके से पेश किया जाए तो कुछ मायने नहीं रखता, न कोई खान, न कपूर, न कुमार. 2 घंटे की ये फिल्म 15 मिनट में मुद्दे पर आती है और हर पल कहानी आगे बढ़ती हैं, कहीं आपको फोन चेक करने और बाहर जाने का मौका नहीं मिलता. ये फिल्म एक बेहद अहम मुद्दे को इतने एंटरटेनिंग तरीके से बताती है कि आपको अहसास भी नहीं होता की आपको ज्ञान दिया जा रहा है और आप वो ज्ञान ले भी चुके होते हैं. यही तो सिनेमा की खासियत है या फिर कहें अच्छे और सधे हुए सिनेमा की खासियत है. फिल्म का हर किरदार जरूरी है. चाहे वो एक होटल में बर्तन धोने वाला छोटा सा लड़का ही क्यों ना हो. ये फिल्म आपसे बहुत कुछ कह जाती है लेकिन इतने हल्के फुल्के अंदाज में कि आपको यकीन नहीं होता. फिल्म आपको काफी रुलाती है तो रुमाल लेकर जाएं, वो भी एक्स्ट्रा. स्पर्श श्रीवास्तव इससे पहले वेब सीरीज जामतारा में दिख चुके हैं लेकिन फिल्म उनकी ये पहली है और वो खूब जमे हैं. एक गांव के लड़के की बॉडी लैंग्वेज को उन्होंने गजब अंदाज में पकड़ा है. रवि किशन पुलिसवाले के किरदार में हैं. ट्रेलर से ही उनका रंग जम गया था और फिल्म में वो नई जान डाल देते हैं. वो जब स्क्रीन पर आते हैं कमाल का एंटरटेनमेंट करते हैं. दुर्गेश कुमार का काम भी काफी अच्छा है.
किरण राव सही मायने में फिल्म की हीरो हैं. उनका डायरेक्शन परफेक्ट है. उन्होंने फिल्म में हर छोटी से छोटी डिटेल पर अच्छे से काम किया है. सिचुएशन से लेकर सेट तक हर चीज में उनकी मेहनत दिखती है. वो करीब 11 साल बाद डायरेक्शन में वापस आई हैं. इससे पहले धोबी घाट बना चुकी हैं. फिल्म देखकर लगता है कि देर से लेकिन दुरुस्त आई हैं. उन्हें और मौके मिलें तो वो कमाल का सिनेमा बना सकती हैं.
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