विधायक पिताश्री मुखिया जी पंचतत्व में हुए विलीन ..छोड़ गए संघर्ष गाथा !
अतिसय रगड़ी करै सो कोय, अनल प्रकट चंदन ते होय ! यह कहावत दिवंगत मुखिया रामाशीष राय और कोथवा ग्रामीणों के साथ शत प्रतिशत सत्य साबित होता है। इस गांव में धुपलाल यादव मुखिया व एक दो यादवों के छोड़ सभी गरीब और दैनिक मजदूरी करने वाले, भैंस पाल कर ,बैलगाड़ी चलाकर, पालदारी कर के अपने जीवन शांतिपूर्ण बिना किसी शिकवा शिकायत के जीते थे। शिक्षा के नाम पर यादव में कुछ के छोड़कर बाकी न के बराबर थी।धुपलाल यादव इनके बृजनंदन यादव काफी धनाढ्य व शिक्षित थे,जो अभी पूरा परिवार अमेरिका में बसे हुए हैं।
इस गांव में कुर्मी का वर्चस्व था,सभी जमीन जायदाद ,व्यापार ,रेलवे के बड़े बड़े ठेकेदार थे लेकिन सभी लोग आपस में भाईचारे के साथ सुख दुख में साथ रहते थे। कोथवा कि पहली घटना सुर्खियों में अस्सी के दशक में आया जब खगौल के डॉन राजकुमार पांडेय की रेलवे स्टेशन दानापुर पड़ाव पर दिनदहाड़े हत्या हो गई थी। पत्थरों से पूरा चेहरा कुचल दिया गया था। पांडेय का दहशत ऐसा था कि इसके डर से रेलवे क्वार्टर की बहू बेटी नही निकलती थी, जिसे जब चाहा, उसे उठा लिया ।एक दिन कोथवा के खगौल में ही बृजनंदन यादव मुखिया जी को अपमानित कर दिया था, उसके बाद ही पांडेय का आतंक सदा के लिए खत्म हो गया था।
दूसरी घटना लखनिबीघा के पुनीत गोप के साथ घटी,जब कोथवा के कुर्मी यादवों के साथ लेकर पुनीत गोप के घर पर चढ़ाई कर दिया।इस में पुनीत गोप बच गए, लेकिन उनके बड़े भाई की रेलवे अस्पताल में हत्या हो गई और एक छोटे भाई की गोली लगी थी। कुर्मी अपने मकसद में कामयाब हो गए लेकिन वहाँ के यादव की स्थिति आगे कुंआ पीछे खाई वाली हो गई थी।
इस घटना के बाद इस गांव में कुर्मी के यादवों पर वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई । बृजनंदन यादव के भाई को बोरिंग पर हत्या कर दी गई । कुछ समय बाद बृजनंदन यादव मुखिया जी की हत्या हो गई। पूरे इलाके में मातम छा गया था। इसके बाद एक - एक यादवों को चुन चुन कर मारे जाने लगे, उसमें विधायक रीतलाल राय के बड़े भाई विजय यादव जो सरकारी नौकरी करते थे की हत्या कर दी गई, इसके बाद प्रमोद यादव के भाई को नृशंस हत्या कर दी गई। उस गांव में यादवों की करो या मरो की स्थिति हो गई।यादवों के बाड़े में एक प्रचलित कहावत है' गोवार बइठल त गोबर और उठल त दोबर !' यह कहावत यहां सार्थक हुआ और रीतलाल राय जैसे भोलेभाले आदमी से लोग थर्राने लगे ।कितने डराने वाले लोग पलायन कर गए और कुछ कोई और धाम चले गए। यह संघर्ष गांव के गरीब गुरबा के जान माल ,इज्जत आबरू बचाने के लिए थी लेकिन देखते देखते पटना जिला से लेकर पूरे बिहार तक रीतलाल राय का वर्चस्व कायम हो गया। इस क्षेत्र में कहीं यादव बनाम अन्य मजबूत जातियों से वर्चस्व की लड़ाई हुई, लेकिन नतीजा ..। गरीब गुरबा आज भी शक्ति केंद्र यहां समझते हैं। रीतलाल 2005 में पहली बार कोथवा पंचायत के मुखिया निर्वाचित हुए, इसके बाद पंचायत निकाय से एमएलसी और इसके बाद दानापुर से राजद विधायक ।आज भी राजद रीतलाल राय को पाटलिपुत्र से सांसद के टिकट दे दे तो इनकी जीत में कोई संदेह न होगा। इस गांव की इतनी संघर्ष के सिर्फ साक्षी दिवंगत मुखिया रामाशीष राय जी नहीं रहे बल्कि खुद भी जान हथेली पर लेकर लड़े और कई बार से इस पंचायत के मुखिया रहे।मुखिया जी की हंसी ठिठोली गज़ब की थी। विधायक के दरबार वहां लगेगा ,लेकिन मुखिया जी के चौपाल की बात ही कुछ और थी ,जो अब सदा सदा के लिए बन्द हो गया।
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