तमिलनाडु की आदिवासी महिला श्रीपति सिविल जज बनीं !


 

     
अवसर मिले और संघर्ष हो तो पहाड़ के कंदराओं में रहने वाले भी सफलता की झंडे गाड़ सकते हैं। यह कोई दैवी शक्ति के चमत्कार से नहीं शिक्षा की ज्योति से सम्भव हुआ है।  आदिवासी समाज कितनी गरीबी, झंझावातों में जीते हैं यह किसी से छुपी हुई नहीं है ,इसके बावजूद श्रीपति जज बन गई जो काबिले तारीफ़ व प्रेरणास्रोत हैं। श्रीपति जब जज की परीक्षा देने जा रही थी तब वो दो दिन पहले एक बच्चा को जन्म दी थी। प्रसव काल में डॉक्टर ऐसे लोगों को आराम करने की सलाह देते हैं लेकिन जब मन में जुनून हो तो कोई बाधा नहीं होता है ,इनकी माँ दूसरों के घर बर्तन साफ कर बेटी को जंगल से लाकर शहर के अच्छे स्कूल में दाखिला दिलवाई थी। पति एम्बुलेंस चलाकर पत्नी को पढ़ने में मदद करते थे। तमिलनाडु के तिरुवन्नामलाई जिले के पुलियूर गांव की 23 वर्षीय आदिवासी महिला श्रीपति के सिविल जज  के रूप में चयन ने कई लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। सिर्फ इसलिए नहीं कि वह राज्य के सबसे पिछड़े पहाड़ी इलाकों में से एक से आती है, बल्कि इसलिए कि उसने बच्चे को जन्म देने के कुछ ही दिन बाद परीक्षा दी थी।
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने सोशल मीडिया पर लिखा, "मुझे एक पहाड़ी गांव में आदिवासी समुदाय की एक युवा महिला को बिना कई सुविधाओं के यह मुकाम हासिल करते हुए देखकर खुशी हो रही है।" तमिल द्रमुक की “द्रविड़ मॉडल सरकार” ने सरकारी नौकरियों में तमिल-मध्यम छात्रों को प्राथमिकता देने वाली एक नीति पेश की थी, जिसके माध्यम  तमिलनाडु में जो लोग सामाजिक न्याय शब्द का उच्चारण करने में भी झिझकते हैं, उनके लिए श्रीपति तमिलनाडु की मिसाल बन गई।

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