आज 57 वर्ष अपने जीवन की पारी को पूरा हुआ ! - प्रसिद्ध यादव।

   


 " मन लगो मोरा यार फकीरी में   ...."

  संत कबीर दास की अनमोल वाणी को आत्मसात किया   " जो दिल ढूंढा अपना मुझसे बुरा न कोई।" ये मेरे साथ चरितार्थ होता है। जीवन में कितने झंझावात आते हैं, चले जाते हैं लेकिन कुछ ज़ख्म दे जाते हैं।कभी धूप ,कभी छांव जीवन में आते जाते रहते हैं।मेरा अनुभव होता है कि अपने कर्तव्यों व दायित्वों को को निर्वहन करते रहें ,प्रकृति के साथ ,स्वच्छंद विचारों के साथ रहें ,सकारात्मक सोच, साहित्य,संगीत में रुचि के साथ जियें ।आज के अर्थ व्यापार युग में हर किसी से परमार्थ की अपेक्षा नहीं कर सकते हैं लेकिन यह सबसे अलग बनाता है। नकरात्मक ,ईर्ष्यालु, नफरती,स्वार्थी तत्वों से जितनी दूरी रहेगी,उतना ठीक रहेगा। संगति का प्रभाव सबसे अधिक पड़ता है।इसलिए संगति भी सोच समझकर करना चाहिए क्योंकि इससे जीवन संवर सकता है और बिगड़ भी सकता है।एक बार भी गलती से बुरे लोगों की संगति हो गई तो सब बर्बाद, इससे अच्छा है कि अकेला रह लें।अपने अंदर संवेदनाओ को कभी खत्म न होने दें और संवेदनहीन लोगों से दूर रहें। बेवजह किसी से बहस करने से कोई फायदा नहीं है।सभी को न आप समझा सकते हैं और न सब आपको।जीवन में तार्किक व वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखना जरूरी है, अंधविश्वासी कभी न बनें।

 आज सबसे छोटा सुपुत्र भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय मुख्यालय  में अपना योगदान दिया।इसके साथ ही मेरे तीनों पुत्र भारत सरकार की सेवा में छोटे - छोटे  से पद पर  हो गए। सबसे बड़ी विशेषता रही कि न मुझे किसी की कभी सिफारिश करवानी पड़ी ,न कोई पावर की जरूरत पड़ी।आम लोगों की धारणा क्या है? मुझे नहीं मालूम ,लेकिन इतना जरूर कहेंगे कि कलम में बड़ी ताकत है, इसे हर किसी को किसी भी परिस्थिति में  अपने पास रखना चाहिए। मैं उन सभी शुभचिंतकों, मित्रों का आभारी हूँ जो मुझे कदम कदम पर साथ देते रहे, कभी विचलित नहीं होने दिए।इस मामले में मैं बहुत ही सौभाग्यशाली रहा कि सैंकड़ों मेरे मित्र साथ हैं।

माँ से जब आशीर्वाद लिया तो वो समझ गई और मुझे मिठाई खाने के लिए रुपये भी दी। आज भी इस मामले में हम बड़ी खुशनसीब समझते हैं।खुशियों छोटी छोटी चीजों में छुपी होती है, जरूरत है उस नजर से देखने की और मैं बड़ी शालीनता, गम्भीरता के साथ इन चीजों को ऑब्जरवेशन करता हूँ।

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