लालू यादव के राजनीतिक मूलमंत्र वंचितों को बराबरी में बैठने के लिए ही है।
जननायक कर्पूरी ठाकुर जी के साथ ही लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न की उपाधि मिली। कर्पूरी ठाकुर वंचितों की आवाज उठाते रहे।वही लालू यादव वंचितों को बराबरी के हक हकूक के लिए अपनी आवाज वंचितों की आवाज बन गई। आडवाणी को भारत रत्न उनके घर जाकर देश की प्रथम नागरिक महामहिम द्रौपदी मुर्मू देती हैं।तस्वीर में बेशर्मी की तरह भारत रत्न लेने वाले व साथ मोदी कुर्सी पर बैठे हुए हैं और राष्ट्रपति चपरासी की तरह खड़ी हैं। राष्ट्रपति से देश में कोई बड़ा नहीं होता है।प्रोटोकॉल के हिसाब से भी।वे तीनों सेनाओं की प्रमुख भी होती है।देश में कहीं भी या देश में कानून व्यवस्था बिगड़ती है तो राष्ट्रपति शासन ही लागू होती है।संसद की संयुक्त सभा की पहली बैठक की अध्यक्षता भी राष्ट्रपति ही करती है।संसद में धन विधेयक या कोई भी अध्यादेश इनकी ही मर्जी से होती है।इतनी सारी ताकत को रहते हुए भी एक अनुसूचित जनजाति की महिला राष्ट्रपति को आडवाणी व मोदी के सामने हिम्मत नहीं हुई या जुर्रत नहीं हुई तो समझिए कि देश में ब्राह्मणवादी मनुवादी व्यवस्था अभी लागू है और ऐसे गैर बराबरी व्यवस्था में लालू यादव के विचारों की सख्त जरूरत है।कर्पूरी जी स्वर्ग से इस दृश्य को देखे होंगे तो उनकी रूह कांप उठी होगी ।काहे को मुझे भारत रत्न दिया जहां वंचित कुर्सी पर बैठने की साहस नहीं कर पाई।इससे पूर्व दलित राष्ट्रपति रामनाथ का भी यही हाल है।देश में वंचित अधिकारियों के साथ आज भी यही सलूक होता है।स्मरण होगा कि मोदी ने रामबिलास पासवान की मूर्ति को कैसे उनके फ्लैट से उखाड़ फेंका था।मोदी का यही रामराज्य है।देश के वंचितों को तय करना है कि उन्हें मोदी वाला रामराज्य चाहिए या वंचितों को सम्मान दिलाने वाला लालू यादव के तथाकथित जंगलराज!
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