मोदी सरकार विपक्षी नेताओं पर किया ईडी का खूब इस्तेमाल!

 

   



   ईडी के डर से कई विपक्षी नेता भाजपा के दामन थाम लिया और अब चैन की बांसुरी बजा रहा है । ईडी की कार्यवाही कछुए की चाल हो गई है।  अपराध अपराध होता है फिर पक्ष व विपक्ष क्या ? अगर यही रवैया सरकार की रही तो यह सरकार की भेदभाव पूर्ण मनमानी है।साल 2014 से अब तक यानी पिछले आठ सालों में नेताओं के खिलाफ ईडी का इस्तेमाल चार गुना बढ़ा है। इन वर्षों में 121 प्रमुख राजनेता जांच के दायरे में आए हैं, जिनमें से 115 विपक्ष के हैं। इस तरह एनडीए राज में ईडी की 95 प्रतिशत  कार्यवाही विपक्ष पर हुई।
भाजपा और कांग्रेस दोनों एक दूसरे पर केंद्रीय जांच एजेंसियों के गलत इस्तेमाल का आरोप लगाते रहे हैं। 3 जुलाई को महाराष्ट्र विधानसभा में वोटिंग के दौरान विपक्षी महाविकास अघाड़ी गठबंधन के नेताओं ने ED-ED (प्रवर्तन निदेशालय) के नारे लगाये थे। उनका आरोप था कि एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाले शिवसेना गुट ने प्रवर्तन निदेशालय के डर से भाजपा से हाथ मिलाया है। साल 2014 से अब तक यानी पिछले आठ सालों में नेताओं के खिलाफ ईडी का इस्तेमाल चार गुना बढ़ा है। इन वर्षों में 121 प्रमुख राजनेता जांच के दायरे में आए हैं, जिनमें से 115 विपक्ष के हैं। इस तरह एनडीए राज में ईडी की 95 प्रतिशत कार्रवाई विपक्षी नेताओं पर हुई।
इन वर्षों में जिन 147 प्रमुख राजनेताओं के खिलाफ कार्रवाई हुई है, उनमें से 85 प्रतिशत विपक्षी दल के थे।
यूपीए शासन (2004 से 2014) में ईडी की केसबुक से अलग आंकड़ा मिलता है। उस दौरान केवल 26 नेताओं की जांच की गई थी, जिनमें से 14 (54 प्रतिशत) विपक्ष के थे।
ईडी के मामलों में बढ़ोतरी लिए मुख्य रूप से प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) जिम्मेदार है। पीएमएलए 2005 में लागू हुआ। उसके बाद से कानून को लगातार मजबूत किया गया। कड़ी जमानत शर्तों के साथ, एक्ट का प्रावधान अब गिरफ्तार करने और आरोपी की संपत्ति कुर्क करने की शक्ति भी प्रदान करता है।
कई नेताओं ने जांच शुरु होने के बाद पार्टी बदल ली। लेकिन तालिका में नेताओं को उन राजनीतिक दलों के तहत सूचीबद्ध किया गया था, जिनसे वे जांच शुरु होने के दौरान संबंधित थे। इसे असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा के उदाहरण से समझा जा सकता है। साल 2014 और 2015 में सीबीआई और ईडी ने सारदा चिटफंड घोटाला मामले में हेमंत बिस्वा सरमा से पूछताछ की थी। सीबीआई ने 2014 में उनके घर और कार्यालय पर छापेमारी भी की थी। तब सरमा कांग्रेस नेता हुआ करते थे। अब वह भाजपा में हैं। पार्टी बदलने के बाद से उनके केस में कोई प्रगति नहीं हुई है।
इसी तरह तत्कालीन टीएमसी नेता सुवेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय को नारद स्टिंग ऑपरेशन मामले में सीबीआई और ईडी ने जांच के दायरे में रखा था। अधिकारी और रॉय पिछले साल पश्चिम बंगाल चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे। तब से उनके मामलों में कोई महत्वपूर्ण प्रगति नहीं हुई है। रॉय वापस टीएमसी में शामिल हो गए हैं।
साल 2019 में ईडी ने टीडीपी सांसद वाई एस चौधरी की संपत्ति कुर्क की थी। तलाशी और कुर्क की कार्रवाई के कुछ महीनों बाद ही चौधरी भाजपा में शामिल हो गए। हालांकि ईडी ने उनके खिलाफ चार्जशीट फाइल की है।
एनडीए -II के तहत कमलनाथ, कैप्टन अमरिंदर सिंह और गांधी परिवार सहित कांग्रेस के प्रमुख नेताओं के कम से कम छह रिश्तेदारों और परिवार के सदस्यों को जांच के दायरे में रखा गया है। केरल के सीपीआई (एम) नेता कोडियेरी बालकृष्णन के बेटे को भी ईडी की जांच का सामना करना पड़ रहा है। कैप्टन अमरिंदर सिंह बीते सोमवार को ही भाजपा में शामिल हुए हैं।
जांच का सामना करने वाले अन्य वरिष्ठ विपक्षी राजनेताओं में कर्नाटक के डी के शिवकुमार, हरियाणा के पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्डा और दिवंगत राज्यसभा सांसद अहमद पटेल का नाम शामिल है। इस लिस्ट में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी सहित एक दर्जन से अधिक प्रमुख टीएमसी नेताओं का नाम भी शामिल है।

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