मुकेश साहनी व पारस का मिजाज हुआ ठंढा !
एक सन ऑफ मल्लाह ,दूसरा केंद्र के मंत्री । दोनोँ की हालत क्या से हो गया? जगजाहिर है। पारस के साथ कई सांसदों के भविष्य भी गर्त में चला गया। साहनी राजद को पिछली बार राजद को बोला था कि ये पीठ में खंजर भोंका है, अब सीने में खंजर घुस गई और उफ तक नहीं निकल रही है।साहनी का राजद से गठबंधन का रास्ता बंद है और ये सब साहनी के बचपना के कारण हुआ। मांझी व उपेंद्र कुशवाहा का भी मिजाज ठंढा हुआ है। अगली बारी है नीतीश की। इन सबों की दुर्गति के कारण खुद हैं। कुर्सी के लिए किसी भी समझौता कर लेना।खुद तो डूबे सनम ,दूसरों को भी ले डूबे वाली हालत हो गई है। आंधी की तरह आने वाले तूफान की तरह चले जाते हैं। जिसके पास अपना वजूद है वही राजनीति में टिक सकता है नहीं तो दूसरों के भरोसे राजनीति करने वाले कभी भी गर्दिश में जा सकते हैं। बहुत पुराने ,कई बार जनप्रतिनिधि रहने वाले भी अपनी पहचान नहीं बना सके ।सदन में मुखर होकर जनता की बात कहने की साहस नहीं जुटा पाता।ऐसे लोग सिर्फ दल की टिकट की रहमोकरम पर राजनीति कर रहे हैं।टिकट कट ,पत्ता कट। तोते की तरह रट्टा मारने से कोई नेता नहीं होता है, अपनी समझ ,विचारधारा जरूरी है। जाति, धर्म के नेता बनकर क्षणिक लाभ हो सकता है लेकिन दीर्घकालीन राजनीति के लिए खुद का प्रभाव जरूरी है।राजनीति सिर्फ किसी तरह जनप्रतिनिधि होने का नाम नहीं है ,बल्कि जनता की बात करना, काम करना व मौलिकता जरूरी है।
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