भारत में अरबपति राज का उदय ! क्या ऐसा ही था रामराज्य?
देश में 1 फ़ीसदी लोगों के पास देश के कुल सम्पत्ति के 40.1फ़ीसदी हो गई है।ऐसी असमानता विश्व की कोई अन्य देशों में नहीं है। इन आंकड़ों को देखकर भारत को समाजवादी लोकतांत्रिक देश कहने पर प्रश्न चिन्ह खड़ा होता है। कहीं न कहीं कर ढांचे में सुधार की जरूरत है ताकि देश में भारी असमानता को कम की जाए । ये पूंजीपति हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था को भी चंदा देकर प्रभावित कर रहे हैं। देश के बड़े बड़े विद्वान इनके चाकरी करने के लिए विवश हैं। भारत की कर ढांचे में निर्धन व्यक्तियों को भी नहीं बख्शा जा रहा है और इसके उलट पूंजीपतियों को राहत दी जाती है और करोड़ों अरबों की कर्ज माफ़ी हो जाती है। एक कट्ठा जमीन वाले से भी केंद्र सरकार सेस के रूप में 29 रुपये कर वसूल रही है और दर्जनों एकड़ जमीन वाले किसानों से भी यही औसत से कर वसूल रही है।भारत में 2000 के दशक की शुरुआत से आर्थिक असमानता लगातार बढ़ रही है। यह दावा एक रिपोर्ट में किया गया है। इसके मुताबिक, 2022-23 में देश की सबसे अमीर एक फीसदी आबादी की आय में हिस्सेदारी बढ़कर 22.6 फीसदी हो गई है। वहीं, संपत्ति में उनकी हिस्सेदारी बढ़कर 40.1 फीसदी हो गई है।‘भारत में आमदनी और संपदा में असमानता, 1922-2023: अरबपति राज का उदय’ शीर्षक वाली रिपोर्ट कहती है कि 2014-15 और 2022-23 के बीच शीर्ष स्तर की असमानता में बढ़ोतरी विशेष रूप से धन के केंद्रित होने से पता चलती है।
ऐसी स्थिति अगर बनी रही तो भविष्य में यह देश चंद पूंजीपतियों की बनकर रह जायेगी । अगर जमींदारी उन्मूलन नहीं हुआ होता तो आज स्थिति और विकट होती ।हालाँकि जमींदारी उन्मूलन में जमीन रखने की सीमा और कम होनी चाहिए थी ।कुछ जमींदार अपने रिश्तेदारों में जमीन को बांट कर जमीन की रकवा कम दिखाकर जमीन को बचा लिया था। अभी भूमि सुधार की जरूरत है और स्वामीनाथन आयोग को शीघ्र लागू करना चाहिए, लेकिन सरकार इसे छू भी नहीं रही है, लागू करना तो दूर की बात है, जबकि मोदी सरकार की यह घोषणा पत्र में जनता से वादा की थी। आज देश में बढ़ती असमानता के कारण ही हम वर्ल्ड हैपिनेस के पायदान पर 126 वें हैं।
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