बहुजनों खुद गले में गुलामी की फंदे डालने पर आमादा ! - प्रसिद्ध यादव।

  


कहने को बहुजन 85 फ़ीसदी है लेकिन आज 15 फ़ीसदी के इशारों पर खुद पैरों में घुंघरू नाचने पर उतारू हैं। कभी अपने स्वतंत्र मत वोट डालने के लिए संघर्ष करते हिंसा होती थी।बूथ अलग करने की मुहिम चली थी,लेकिन समय राजनीति स्वार्थ में इतना बदल गया कि स्वतंत्र रूप से मतदान करने की व्यवस्था होने पर लोगों की मानसिकता गुलामी की ओर जा रही है।जब आदमी किसी का मानसिक गुलाम हो जाये तो उसे कुछ भी करवाना आसान हो जाता है, उस पर प्रभुत्व जमाना आसान हो जाता है। गुलाम लोगों को न रोजगार, न महंगाई, न नफरती बयान,न जुमले आदि दिखाई देते हैं, उसे बस धर्म की ध्वज दिखाई पड़ती है। ऐसे लोगों के हरकतों से  बहुजन कमजोर हो गए हैं। जिसके हाथों में सत्ता की बागडोर होनी चाहिए था, वो दूसरे के हाथों के खिलौने बने हुए हैं।  इस तरह ये अपने वजूद को मिटाने पर आमादा हैं। बड़ी मुश्किल से बहुजनों को अपनी पहचान मिली थी, सत्ता में भागीदारी मिली थी ,अब सिर्फ हाशिये पर ही नहीं, नेपथ्य में जाने की तैयारी कर लिया है। अभिजात्य वर्ग का संवैधानिक संस्थाओं पर तो कब्जा था,जिस पर बहुजन धीरे धीरे अपनी धाक जमाना शुरू किया था, अब राजनीतिक रूप से पूर्ण हथियार डाल दिया है।अब बहुजन ही बहुजन से दो दो हाथ करने के लिए तैयार है तो अभिजात्य वर्ग को कुछ बोलने व करने की जरूरत नहीं है, सिर्फ तमाशबीन रहेंगे।  हम आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, सम्मान, अचल संपत्ति देने के लिए कितना मजबूत है? अगर नहीं तो आपके हिस्सा को किसने हकमारी की है?ये सोचने समझने की जरूरत है। राजनीति विरासत क्या देंगे?  किसी की तलवा सहलाने से अच्छा है संघर्ष कर मर जाना ।बहुजन समाज के पुरखों ने कितनी मेहनत व संघर्ष के बाद अपने हक हकूक को दिलाये थे,जिसे चंद जयचंद जैसे बहुजनों के नेताओं ने मटियामेट कर रहा है। डाल के छूटा बंदर,समय के चुका आदमी कहीं का नहीं रह पाता है।हमें स्मरण करना चाहिए बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर  ,ज्योति बाई फुले, सावित्री बाई, जगदेव बाबू के संघर्षों को । कहीं हम अंधे दौड़ में आने वाले पीढ़ियों को गुलामी की जंजीरों में बांधने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं।आने वाले पीढ़ियों को जिल्लत भरी जिंदगी देने की तैयारी तो नहीं कर रहे हैं? 

यह पत्र उन मित्रों को समर्पित हैं, जिनके मन में कुछ डगमगा रहा है।इसे अनेक बार पढ़ें और दूसरों को पढ़ने के लिए प्रेरित कर रात में सोने से पहले एक बार जरूर सोचे।-प्रसिद्ध यादव।

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