परीक्षाओं मे धांधली रोक पाने में एनटीए असफल ! - प्रसिद्ध यादव।
देश के भविष्य के साथ खिलवाड़ डूब मरने वाली बात है।
जब बुनियाद ही गड़बड़ है तो परिणाम ठीक कहाँ से होगा ? प्रतियोगी परीक्षाओं का संचालन निजीकरण करने का हश्र दुनिया देख लिया। दिन रात मेहनत कर के पढ़ने वाले प्रतियोगी सड़क पर धूल फांकते रह जाते हैं और दिन रात आवारागर्दी करने वाले नॉकरी में चले आते हैं। कोई एक दो प्रतियोगी परीक्षाओं की बात नहीं है यूजीसी ,नीट, शिक्षक से लेकर पुलिस भर्ती में यही हाल है।देश के युवा इस कुव्यवस्था से टूट चुके हैं और इसके लिए सीधे तौर पर सरकार दोषी है। अब बेशर्म की तरह कोई जवाबदेही नहीं ले ये अलग बात है। परीक्षाओं में गड़बड़ी होने पर जांच के नाम पर लीपापोती होती है, युवाओं के समय ,पैसे नष्ट होता है। इसकी हर्जाना कौन भरेगा ? अगर सरकार पेपर लीक रोकने में असफल है तो उस सरकार को एक क्षण भी बने रहने का नैतिक अधिकार नहीं है। परीक्षाओं में पेपर लीक के मामले लगातार सामने आ रहे हैं। अब किसी भी व्यावसायिक संस्थान की प्रवेश परीक्षा या भर्ती परीक्षा में ऐसा ना होना अपवाद माना जाने लगा है। परीक्षा लेने वाली लगभग हर संस्था पर विद्यार्थियों का ही नहीं सामान्य जन का विश्वास भी डगमगा गया है। आज से पचास- साठ साल पहले ऐसा होना असंभव माना जाता था।
स्कूल बोर्ड परीक्षाओं की साख इतनी सशक्त थी कि उन परीक्षाओं में प्राप्त अंकों के आधार पर बड़े-बड़े इंजीनियरिंग और मेडिकल संस्थानों में प्रवेश मिल जाता था। समय के साथ संस्थानों की साख घट गई। इनके जो विकल्प तलाशे गए, वे भी समाज में नैतिकता के घोर ह्रास में कहीं खो गए।
नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) की स्थापना 2017 में की गई थी। इसके लिए एक देश, एक परीक्षा’ को आधार बनाया गया था। विद्यार्थियों को विभिन्न संस्थानों के लिए अलग-अलग परीक्षा देने से बचाना इसका उद्देश्य था।
एनटीए इस समय कठिन परिस्थितियों का सामना कर रही है। वर्तमान स्थिति तो यही है कि कई परीक्षाओं मे धांधली रोक पाने में यह संस्था असफल रही है। जैसे-जैसे परीक्षा प्रणाली पर हर स्तर पर बोझ बढ़ता गया। जाटिलताएं भी बढ़ीं, जिनका समाधान असंभव नहीं था, लेकिन जब नैतिकता में आई शिथिलता हावी हो जाती है, तब सशक्त व्यवस्थाएं भी अपने को असहाय पाती हैं।
वर्तमान स्थिति का विवेचन इसी परिप्रेक्ष्य में होना चाहिए। हमारे देश की परीक्षा प्रणाली में सुधार की आवश्यकता लगातार जताई जाती रही है, लेकिन प्रभावशाली परिवर्तन और सुधार अभी भी हो नहीं पाए हैं। केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए अब सीयूईटी परीक्षा आयोजित करने का प्रावधान करना पड़ा क्योंकि विभिन्न राज्यों के स्कूल बोर्ड के मूल्यांकन स्तर आपस में कोई समन्वय स्थापित नहीं कर सके। बढ़ती जनसंख्या और बेरोजगारी के कारण सरकारी नौकारियों के लिए होने वाली परीक्षाओं में अभ्यर्थियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। उत्तर प्रदेश में पुलिस भर्ती परीक्षा में पेपर लीक हुआ। 48 लाख से अधिक परीक्षार्थी ठगे से रह गए। ऐसी परिक्षाओं को संचालित करने वाली संस्थाओं को ब्लैक लिस्ट कर अविलंब कार्यवाही करनी चाहिए।
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