एनसीईआरटी की पाठ्यक्रम में कुछ खास विचारधाराओं का समावेश !
आखिर एनसीईआरटी पुस्तकों के बोझ कम करने के आर में विद्यार्थियों को क्या पढ़ाना चाहती है? एनसीईआरटी की पूर्व की पुस्तकों में आरएसएस ,भाजपा को शर्मिंदा होना पड़ता था, उसे इस पाठ्यक्रम से निकाल दिया गया है। आखिर जब देश के विद्यार्थी देश की अतीत की सच्चाई को नहीं जानेंगे तो हम उन्हें क्या ज्ञान दे रहे हैं।यह एक गम्भीर मामला है ।
एनसीईआरटी ने कक्षा 12 के लिए इतिहास की किताब को 'थीम्स ऑफ़ इंडियन हिस्ट्री' (भारतीय इतिहास के कुछ विषय) शीर्षक से तीन हिस्सों में प्रकाशित किया है. इसके दूसरे हिस्से के पाठ 9 राजा और इतिहास, मुग़ल दरबार को अब पुस्तक से हटा दिया गया है.
एनसीईआरटी की वेबसाइट पर डाउनलोड करने के लिए इतिहास की जो नई किताबें उपलब्ध हैं उनसे 28 पन्नों का मुग़ल शासकों पर केंद्रित ये अध्याय ग़ायब है.
एनसीईआरटी की भारत के पूर्व मुसलमान शासकों को पाठ्यक्रम से हटाने के इस क़दम को भारतीय इतिहास से मुग़लों को हटाने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है. वहीं एनसीईआरटी का तर्क है कि ऐसा छात्रों पर पाठ्यक्रम के बोझ को कम करने के लिए किया गया है। अब एनडीए के घटक दलों के नेताओं नीतीश, चंद्रबाबू नायडू को सोचना होगा कि उनके जो धर्मनिरपेक्ष छवि है, वे उसके साथ रहते हैं कि आरएसएस ,भाजपा के सुर में सुर मिलाते हैं।
किताबों में बदलाव की इस प्रक्रिया में सिर्फ़ इतिहास की किताब से मुग़लों से जुड़े अध्याय को ही नहीं हटाया गया है. बल्कि राजनीति शास्त्र की किताब से उन वाक्यों को भी हटा दिया गया है जिनमें हिंदूवादियों के प्रति महात्मा गांधी की नापसंदीदगी और उनकी हत्या के बाद आरएसएस पर प्रतिबंध का ज़िक्र था.
महात्मा गांधी की हत्या करने वाले नथुराम गोडसे के बारे में लिखा वाक्य 'कि वो पुणे के ब्राह्मण थे' भी किताब से हटा दिया गया है.
वहीं कक्षा 11 की समाजशास्त्र की किताब से 2002 के गुजरात दंगों से जुड़े तीसरे और अंतिम संदर्भ को भी हटा दिया गया है। विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क पर किसी खास विचारधारा को थोपना उचित नहीं है।
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