भारतीय ई-कामर्स बाजार छोटे दुकानदारों, मॉल्स को भट्टा बैठा देगी।

   


देश में पूंजीपतियों का प्रभाव इतना पड़ रहा है कि छोटे छोटे व्यवसायी ,मॉल्स ,किराना दुकानदार को बड़ा झटका लग रहा है। फेरीवाले को अब कोई पूछता नहीं है।इसका असर होटल,रेस्तरां पर भी पड़ रहा है।घर बैठे मोबाईल फोन के एक क्लिक पर खाना पीना ,जरूरत के समान घर पर हाज़िर हो जा रहे हैं। इसका दुष्प्रभाव छोटे व्यवसायियों पर पड़ रहा है।मुनाफा कमाने की बात तो दूर ,दुकानों के रेंट देना मुश्किल हो रहा है।  इस बीच कुछ ही वर्षों में देखते-देखते, सोशल मीडिया, ईमेल और खोज इंजन जैसे विभिन्न डिजिटल चैनलों के माध्यम से छोटे व्यवसायों, स्टार्ट-अप, गैर-लाभकारी संस्थानों के रूप में भी चारों ओर उद्योगों की एक नई कतार खड़ी होती जा रही है। ऐसे में संभावना जताई जा रही है कि 2025 तक भारतीय डिजिटल मार्केटिंग उद्योग 160 अरब डालर तक पहुंच सकता है। कुछ साल पहले कोरोना महामारी में जब घर बैठे खरीदारी अत्यंत मुफीद लगी, तो माल आधारित डिपार्टमेंटल स्टोर, छोटे शापिंग माल नाटकीय गिरावट के साथ तेजी से बंद होने लगे। डिजिटल मार्केटिंग ने छोटे-मंझोले दुकानदारों और शापिंग माल संचालकों की तो जैसे कमर ही तोड़ दी है। बाजार की यह करवट देश के ग्राहकों को भी खूब रास आ रही है।

भारतीय ई-कामर्स बाजार ऊंची उड़ानें भर रहा है।  भारतीय अब प्रतिदिन औसतन 3.4 घंटे आनलाइन और स्मार्टफोन पर पांच-छह घंटे बिता रहे हैं। जिस रफ्तार से आनलाइन खरीदारी विस्तार पा रही है, फैशन, प्रौद्योगिकी, घरेलू सजावट जैसी आनलाइन शापिंग का भी विशाल उपभोक्ता वर्ग डिजिटल मार्केटिंग उद्योग की रणनीति का महत्त्वपूर्ण हिस्सा होता जा रहा है। ‘इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन आफ इंडिया’ (आईएएमएआइ) का एक अध्ययन बताता है कि हजारों लाख खातों के साथ डिजिटल क्षेत्र आम जीवन में संचार का एक अपरिहार्य उपकरण बन चुका है। एक समय में लाखों लोगों तक संदेश पहुंचाने की दृष्टि से ईमेल मार्केटिंग सबसे प्रभावी तरीकों में से एक हो चुकी है।


दूसरी तरफ, रियल एस्टेट कंसल्टेंसी फर्म ‘नाइट ऐंड फ्रैंकलिन’ की एक ताजा रपट के अनुसार हमारे देश में छोटे शापिंग माल बहुत तेजी से बंद हो रहे हैं। आनलाइन खरीदारी से उन्हें तेज झटके लग रहे हैं। इसका सबसे बड़ा कारण महानगरीय आधुनिकता के अंधाधुंध प्रवाह में निम्न और मध्यवर्गीय प्राथमिकताओं में बदलाव आना है। पिछले वर्ष तक देश में माल के अंदर किराए के लिए तैयार खाली दुकानों की संख्या 238 फीसद बढ़ी है। इस गिरावट ने बड़े पैमाने पर बेरोजगारी को भी हवा दी है। देश के व्यावसायिक क्षेत्र में इससे मझोले दर्जे के व्यापारियों को झटका लगा है।

‘नाइट फ्रैंक’ की भारत के 29 शहरों के सर्वे पर आधारित ‘थिंक इंडिया थिंक रीटेल-2024’ शीर्षक रपट में आगाह किया गया है कि बचे-खुचे 132 छोटे शापिंग माल भी देर-सवेर बंद होने के कगार पर हैं। इनकी 36.2 फीसद से ज्यादा दुकानें खाली पड़ी हैं। इस तरह भवन निर्माताओं को 67 अरब रुपए से ज्यादा का नुकसान हो चुका है। बड़े शापिंग माल ही ऐसे झटकों से बचे हुए हैं। बीते वर्ष तक, दिल्ली, मुंबई, बंगलुरु समेत देश के आठ महानगरों के 263 शापिंग माल बंद हो गए। बंद होने वाले माल में सर्वाधिक दिल्ली एनसीआर के हैं।

आनलाइन बिक्री में जोरदार वृद्धि हुई है, इस बदलते हालात का खुदरा रोजगार यानी स्थानीय श्रम बाजारों पर गंभीर प्रभाव देखा जा रहा है। शापिंग माल, डिपार्टमेंटल स्टोर आदि में हाल के वर्षों में अन्य प्रकार के खुदरा विक्रेताओं की तुलना में नौकरियों में भारी गिरावट आई है। यह कार्यक्षेत्र आनलाइन शापिंग की लहर उठने के कारण सबसे अधिक असुरक्षित हो चुका है। एक दशक पूर्व तक, छोटे शापिंग माल, डिपार्टमेंटल स्टोर आदि खुदरा बाजार के विक्रेताओं से जुड़े रोजगार के नजरिए से पूरी महानगरीय बाजार व्यवस्था को एक खास दिशा में ले जाने की हैसियत रखते थे। अचानक आनलाइन शापिंग के हस्तक्षेप के बाद लाखों लोग नौकरियों से हाथ धो बैठे हैं।भारत विश्व की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। अगर हर क्षेत्र में बेरोजगारी हो जाएगी तो क्या होगा?


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