जब दिलोदिमाग में जाति - धर्म का नफरत है , तब शिक्षित होने पर लानत है !- प्रसिद्ध यादव।

   


चाहे वो खुद को कितना भी काबिल या शिक्षित क्यों न समझे ।अगर किसी के दिलोदिमाग में ऊंच नीच ,छुआछूत ,जाति, धर्म के नाम पर नफरत करता है या फैलता है तो वो शिक्षित होना तो दूर की बात है ,मानव भी नहीं है। आदमी के शक्ल में दानव हो गया है। दिलोदिमाग से कोई जन्मजात नफरती नहीं होता है, बल्कि संगति का असर पड़ता है। जैसे ही वैसे लोगों की किसी को भी संगति हो जाएगी ,धीरे धीरे उसमें नफरत की लक्षण दिखाई देने लगता है। यूं कहें उसका व्यक्तित्व दीमक लगने की तरह जीर्णशीर्ण होने लगता है। कुछ लोग इसके अज्ञानता के शिकार हैं तो कुछ राजनीति में वांछित फल पाने के लिए ऐसा करते हैं। ऐसे सोचने वाले का खुद की चिंतन शक्ति खत्म हो जाता है और दूसरों की बातों,विचारों के गुलाम हो जाता है। अंत में क्या मिलता है कुछ नहीं।खुद को श्रेष्ठ समझने की भूल में दूसरों को नीचा दिखाने की काम भले आदमी का नहीं है। अगर कोई ये समझता है कि उसकी करतूत कोई नहीं समझता है तो ये बेवकूफी है।नज़र के नज़र मिलने मात्र से सब मालूम हो जाता है।कबीर जी मानव की ऐसी दोहरे चरित्र पर क्या नहीं कहा है? कबीर दास की पूरी कविता ही मानव के सुधार के लिए है, तभी तो दास आज भी प्रासंगिक हैं और रहेंगे।हम मानव हैं तो हम में मानवीय संवेदना, गुण भी होनी चाहिए और यह गुण क्या है ।यह बताने की जरूरत नहीं है, सर्वविदित है।

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