दो टूक बातें ! आप किधर हैं ? -प्रसिद्ध यादव।
व्यक्ति के साथ नहीं,विचारों के साथ चलें !
एक तरफ बुद्ध, महाबीर, कबीर, रैदास ,ज्योति राव फुले ,सावित्री बाई ,साहूजी ,महात्मा गांधी के विचारें ,दूसरी तरफ मनुस्मृति,गोडसे ,ढोंग ,पाखंड,नफरत,झूठ आदि। दूसरे तरफ हो सकता है कुछ क्षणिक लाभ ,सुख मिल जाये लेकिन भविष्य गर्दिश में है।पहले तरफ कष्ट,संघर्ष है लेकिन भविष्य उज्ज्वल है, मान सम्मान है। आप सोचिए!आप किधर हैं?
व्यक्तिवादी नहीं बनें। हमें विचारधारा के साथ चलना चाहिए। व्यक्ति का चाल चलन, विचारधारा बदलते रहता है लेकिन विचारों में जल्द बदलाव सम्भव नहीं है। सभी राजनीतिक दल अपने विचाधाराओं से अपने कार्यकर्ताओं ,नेताओं को विचारों से लैस रखने के लिए प्रशिक्षण देते रहते हैं, सेमिनार, गोष्ठी, महापुरुषों के जन्मदिन, पुण्यतिथि मनाते रहते हैं, पत्रिका, अखबार आदि निकालते हैं।भारत में लेफ्ट,राइट ,समाजवादियों आदि विचारों की राजनीति होती है। राइट में आरएसएस ,भाजपा जैसी मनुवादी विचारधारा के लोग होते हैं और इनके कार्यकर्ता, नेता भी इसी विचारधारा के होते हैं।यह मुख्यतः सवर्णों, व्यवसायियों के साथ प्रमुखता से राजनीति करती है। इसका ध्येय 15 का शासन 85 पर हो और यह इसमें सफल भी है ,क्योंकि इसकी यह नीति गुप्त है और इसके आर में हिन्दू मुस्लिम की राजनीति होती है। वंचित ,बहुजन समाज के कुछ लोग इसके चंगुल में फंसे हुए हैं या यूं कहें वो गुलाम हो गए हैं।नतीजा, खुद तो गये सनम दूसरों को भी ले डूबे वाली बात है। कॉंग्रेस पार्टी भी 90 के दशक के पूर्व इसी राह पर थी तो देश के स्वर्ण लोग उसके साथ थे लेकिन भाजपा इससे आगे बढ़कर मनुस्मृति की बात करने लगी तो 99 फ़ीसदी स्वर्ण ,व्यवसायी इनके साथ हो गए। इन दोनों पार्टियों के अलावा देश में तीसरे लोग हैं, जिनका अस्तित्व राष्ट्रीय स्तर पर सरकार बनाने की नहीं है।ये कहीं कहीं राज्यों में सत्ता में या विपक्ष में है।इनकी गठबंधन या तो भाजपा से है ,कॉंग्रेस से या फिर स्वतंत्र रूप से है। राष्ट्रीय स्तर के वंचितों, बहुजनों की लोककल्याण की नीति कैसे बनेगी ? लेफ्ट मजदूरों, किसानों की लड़ाई लड़ती है लेकिन अन्य पूंजीपति दलों के आगे इसका फैलाव नही हो रहा है। देश पर वंचितों, बहुजनों का शासन होगा !यह अभी दिवास्वप्न होगा। राज्यों में मिले शासन को संभालना मुश्किल हो रही है। इसके पीछे एक कारण है संविधानिक संस्थाओं पर मनुवादियों का कब्जा ।यह बात बहुजनों को नहीं दिखता है जो भाजपा ,आरएसएस के साथ है। समाजवादी विचारधारा के नेताओं के भी रहन सहन अब राजा महाराजा की तरह हो गया है।आम लोगों से मिलना जुलना भी इसी अंदाज में हो गया है। अब इसी पेशोपेश में लोगों का भटकाव हो रहा है।सबसे अधिक जनमानस के मस्तिष्क पर जो प्रभाव पड़ता है वो है मीडिया।यह 99 फ़ीसदी बिक चुकी है और न्यायपालिका, कार्यपालिका की तरह यहां भी मनुवादियों का कब्जा है।यह जनमत बनाने ,बिगाड़ने का काम करता है। अब मीडिया भटगिरी कर रहा है। खुद की चेतना हर व्यक्ति में होना चाहिए कि हम कहाँ पर ,किस विचारधारा के साथ खड़े हैं? अगर इसका भान हर किसी को हो गया तो इस देश की तस्वीरे बदलने में देर नहीं लगेगी और जिसकी जितनी भागीदारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी होगी।
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