दूध के नाम पर ज़हर ! सरकार दूध की कीमत बढ़ाकर मिलावट को सख्ती से रोके।- प्रसिद्ध यादव।
आज हर चीजों में मिलावट आम बात है। ये मिलावट मुनाफाखोरी के लिए हो रहा है। मुनाफाखोरी किसी के जीवन को बर्बाद करना न कानूनी रूप से ठीक है और ना ही नैतिक रूप से ही। मिलावट को रोकने के लिए खाद्य व उपभोक्ता संरक्षण बना हुआ है।ये समय समय पर बाजारों में जांच करती है लेकिन नाकाफ़ी है। दूध व्यवसायी को अगर दूध का उचित मूल्य मिला होता तो शायद यह गोरख धंधा नहीं होता। एक गाय ,भैंस रखने, उसे खिलाने पिलाने से लेकर दूध निकालने की प्रक्रिया तक काफ़ी लागत हो जाता है और उसका मूल्य मुश्किल से 50 -55 रुपये लीटर मिलता है।जबकि लागत के हिसाब से इसका मूल्य कम से कम 100 रुपये लीटर होना चाहिए था। इस लागत और मुनाफा के बीच ज़हर का खेल होता है।इसमें सरकार की बड़ी उदासीनता कारण है। दूध का उपयोग बच्चे, बूढ़े, बीमार लोग ज्यादा करते हैं, जिनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। दूध को लंबे समय तक सुरक्षित रखने के लिए उसमें फॉर्मेलिन मिलाया जाता है। यह अत्यधिक विषैला होता है और लीवर और किडनी पर हानिकारक प्रभाव डालता है। दूध में पानी की मिलावट कोई नई बात नहीं है। दूध व्यापारी ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए दूध में सिर्फ पानी है नहीं बल्कि कई तरह के केमिकल्स मिक्स करते हैं ताकि दूध की क्वालिटी और क्वांटिटी दोनों बढ़ाई जा सके। जाहिर है दूध में किसी भी तरह की मिलावट आपकी सेहत को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है।
दूध में मुख्य रूप से यूरिया, फॉर्मेलिन, डिटर्जेंट, अमोनियम सल्फेट, बोरिक एसिड, कास्टिक सोडा, बेंजोइक एसिड, सैलिसिलिक एसिड, हाइड्रोजन पेरोक्साइड, शुगर और मेलामाइन जैसे केमिकल और पदार्थ मिलाए जाते हैं। इन सभी के अलग-अलग नुकसान हैं।
इनमें से माल्टोडेक्सट्रिन का आजकल दूध में मिलावट करने में बहुत ज्यादा इस्तेमाल किया जा रहा है। सरकार अविलंब दूध की कीमत बढ़ाकर इसकी मिलावट को सख्ती से रोकने का प्रयास करे।
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