प्रेमचंद की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। -प्रसिद्ध यादव।
खगौल में आज प्रेमचंद की जयंती मनाई जाएगी।
प्रेमचंद ने कुल 15 उपन्यास, 300 से कुछ अधिक कहानियाँ, 3 नाटक, 10 अनुवाद, 7 बाल-पुस्तकें तथा हजारों पृष्ठों के लेख, सम्पादकीय, भाषण, भूमिका, पत्र आदि की रचना की लेकिन जो यश और प्रतिष्ठा उन्हें उपन्यास और कहानियों से प्राप्त हुई, वह अन्य विधाओं से प्राप्त न हो सकी। इनकी रचनाओं को विद्यालयों, महाविद्यालयों में पढ़ानी चाहिए थी ,उतनी पाठ्य पुस्तक की हिस्सा नहीं बन सकी। इनके कहानियों के पात्र राजा ,महाराजा, देवी देवता नहीं बल्कि गांवों,कस्बों के तंगहाल ,फटेहाल लोग होते थे।
प्रेमचंद की जीवनी और उनकी रचना पढ़नी चाहिए।जिसे धर्म के नाम पर नफ़रत, द्वेष,घृणा है और मानवता से बड़ा कोई और धर्म समझता है, उसकी भी आंखों की पट्टी खुल जाएगी।जातीय व्यवस्था, छुआछूत, ऊंच नीच का भेदभाव देखना है तो ' ठाकुर का कुंआ 'कहानी पढ़ना चाहिए। ब्राह्मणवादी व्यवस्था की चक्की में कैसे लोग पिसा रहे हैं इसका सजीव चित्रण ' सवा सेर गेंहू' कहानी पढ़ना चाहिए। नरक का भय दिखाकर विप्र शंकर को सवा सेर गेंहू के बदले 6 मन गेंहू लेता है फिर भी कर्ज नही चुकता हुआ।वह थक हार कर विप्र का बंधुआ मजदूर बन जाता है, इसके मरने के बाद इसका बेटा भी बंधुआ मजदूर बन जाता है।आज भी अंधविश्वासी लोग बंधुआ मजदूर की तरह ही जी रहे हैं। गोदान,कर्मभूमि, निर्मल,पंच परमेश्वर, नमक का दारोगा, ईदगाह आज भी प्रासंगिक व प्रेरणादायक है।प्रेमचंद की जिंदगी कितनी फटेहाल,तंगहाल था कि घर चलाने के लिए वे अपना कोट,किताब बेच दिए थे। अल्प समय में माँ की साया खत्म हो गई,13 साल में अपने से उम्रदराज लड़की से शादी हो वो भी कुरूप, कर्कश आवाज वाली और बाद में छोड़कर चली गई, सौतेली माँ की पडतारना, फिर विधवा से विवाह करना इनके जीवन की नियति थी। प्रेमचंद की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं।
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