अमीर लोगों को टैक्स में भारी कटौती कर देश में असमानता को बढ़ावा देती सरकार।

 


वर्ल्ड इनइक्वालिटी डेटाबेस के ताज़ा रिसर्च के मुताबिक़, भारत में असमानता अपने 100 साल के शिखर पर पहुंच चुकी है.

ऐसे में इस बात पर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि हाल के दिनों में चुनाव अभियान की परिचर्चाओं में संपत्ति के वितरण और विरासत के टैक्स के इर्द गिर्द घूमती नज़र आई है.

हाल ही में भारत के अरबपति कारोबारी मुकेश अंबानी के बेटे की शादी से पहले के तीन दिनों के समारोह के दौरान भारत के इस 'सुनहरे दौर' की झलक दिखाई दी थी.

इस आयोजन में मार्क ज़करबर्ग, बिल गेट्स और इवांका ट्रंप शामिल हुए थे.

रिहाना ने बॉलीवुड के बड़े-बड़े सितारों के साथ ठुमके लगाए थे.

आज भारत में लग्ज़री ब्रैंड की कारें, घड़ियां और महंगी शराब के निर्माताओं का कारोबार, भारत की आम जनता की ज़रूरत की चीज़ें बनाने वाली कंपनियों की तुलना में कहीं ज़्यादा तेज़ी से बढ़ रहा है. कुछ मुट्ठी भर विशाल कारोबारी घराने, ‘हज़ारों छोटी छोटी कंपनियों की क़ीमत पर’ आगे बढ़े हैं ।देश के बेहद अमीर लोगों को टैक्स में भारी कटौती और ‘राष्ट्रीय चैंपियन’ तैयार करने की सोची समझी नीति का फ़ायदा मिला है. इस नीति के तहत बंदरगाहों और हवाई अड्डों जैसी बेशक़ीमती सार्वजनिक संपत्तियों को बनाने या चलाने के लिए कुछ पसंदीदा गिनी चुनी कंपनियों के हवाले कर दिया गया है.

इलेक्टोरल बॉन्ड के आंकड़ों के सार्वजनिक होने के बाद ये पता चला है कि इनमें से कई कंपनियां सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी को चंदा देने में सबसे आगे रही हैं. मुट्ठी भर लोगों के विकास से अर्थव्यवस्था में उछाल आ सकता है लेकिन करोड़ों लोगों की जिंदगी तंगहाली में कट रहे हैं।क्या सबका साथ, सबका विकास यही है?


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