अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का दूसरा नाम था कुलदीप नैयर। -प्रसिद्ध यादव।

  


क़ानून की डिग्री होने के बावजूद कुलदीप नैयर ने अपने करियर की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में दिल्ली से छपने वाले एक उर्दू अख़बार 'अंजाम' से की. कुलदीप नैयर ने  हमलोगों से बात करते हुए कहा था कि अपने करियर के शुरुआती दिनों में वो अपने दफ़्तर में बैठे हुए थे. अचानक वहाँ रखे टेलीप्रिंटर की घंटी बजी. और उस पर एक ख़बर फ़्लैश हुई, 'गांधी शॉट एट.'

"मैं तुरंत बिड़ला हाउस भागा. मेरा एक साथी मुझे अपनी मोटर साइकिल की पिछली सीट पर बैठा कर वहाँ छोड़ आया. जब मैं वहाँ पहुंचा तो पंडित नेहरू, सरदार पटेल और मौलाना आज़ाद वहाँ पहुंच चुके थे. मेरे सामने ही लार्ड माउंटबेटन वहाँ पहुंचे और उन्होंने गाँधी के पार्थिव शरीर को सेल्यूट किया. मुझे निजी तौर पर लगा कि मुल्क के सिर पर हाथ रखने वाला हमारे बीच से उठ गया."

   अपने कॉलम को वह अंग्रेजी के अलावा लगभग सभी भारतीय भाषाओं में भेजते थे, जिसे लाखों लोग पढ़ते और पसंद करते थे। पत्रकारिता के साथ ही सार्वजनिक जीवन में भी उनकी बेहद सक्रियता थी। अभिव्यक्ति की आजादी और लोकतंत्र की मजबूती उनके जीवन का मिशन था। आपातकाल में वह पत्रकारिता की आजादी के सवाल पर जेल भी गए। मानहानि विधेयक हो या बिहार प्रेस बिल या पत्रकारिता की आजादी पर कोई और हमला, कुलदीन नैयर ने हमेशा उसका जमकर विरोध किया। मानवाधिकारों के मुद्दे और भारत पाकिस्तान के बीच अच्छे रिश्तों को लेकर वह बेहद मुखर थे। इस पर उनकी कलम भी चलती थी और खुद भी सक्रिय रहते थे। 

 वे भारत के प्रसिद्ध लेखक एवं पत्रकार थे। इनका  14 अगस्त 1924, सियालकोट (अब पाकिस्तान) में हुआ था

यह 2007  होगा शायद ।  कुलदीप नैयर जी पटना आये थे  ।मैं उन्हें न सिर्फ करीब से देखा बल्कि पत्रकारिता के सम्बंध में लंबी बातचीत हुई थी। उस सेमिनार में पटना के प्रमुख संपादकों के साथ  बैठक थी।उन दिनों मैं बिहार से प्रकाशित एक पत्रिका का संपादक था ,इसके कारण उस सेमिनार में मुझे मौका मिला था। नैयर साहेब के साथ बीबीसी के मणिकांत ठाकुर व अन्य देश के प्रतिष्ठित पत्रकार भी थे।

 अपने पत्रकारीय जीवन में भी नैयर साहब लक्ष्य केंद्रित ही रहे, दांऐं - बांए नहीं देखते थे । अपनी ही राह के जुनूनी और जिद्दी पत्रकार ।

नैयर साहब से सचमुच बहुत अच्छी बात हुई । समकालीन मुद्दों और परिदृश्य पर इतनी पैनी नजर के, इतना संदर्भ समृद्ध और प्रखर चेतना के पत्रकार विरले होते हैं ।

' बियॉन्ड द लाइंस ' उनकी मशहूर किताब है जिसमें उन्होंने पाकिस्तान में जन्म से लेकर भारत में पत्रकारिता और राजनीतिक उथल-पुथल तक को रोचक तरीके से बयां किया है । इसमें उन्होंने अपने पत्रकारिता क्षेत्र से लेकर सासंद बनने तक के सफर और आपातकाल से जुड़ी कई बातें लिखी हैं । इस किताब में ही उन्होंने लाल बहादुर शास्त्री के प्रधानमंत्री  बनने की वजह अपनी खबर को बताया था ।

' विदआउट फियर ' : लाइफ एंड ट्रायल ऑफ भगत सिंह ' । यह किताब शहीद भगत सिंह के जीवन पर आधारित है । इसमें नैयर ने भगत सिंह के बारे में बताया, जिसमें उनकी मान्यताएं, उनका बौद्धिक झुकाव, उनके सपने और उनकी निराशा आदि का वर्णन है ।  वह भारत सरकार के प्रेस सूचना अधिकारी के पद पर कई वर्षों तक कार्य करने के बाद  यूएनआई, पीआईबी, द स्टैट्समैन , इण्डियन एक्सप्रेस के साथ लम्बे समय तक जुड़े रहे । वह 25 सालों तक ‘द टाइम्स' लन्दन के संवाददाता भी रहे ।उनकी स्कूली शिक्षा सियालकोट में हुई । विधि ( ला )  की डिग्री लाहौर से ली । पत्रकारिता की डिग्री अमेरिका से ली । वह  दर्शनशास्त्र में पीएचडी थे ।

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