" यमराज ऑन अर्थ " नाटक की नाट्य समीक्षा-प्रसिद्ध यादव।
* प्रकृति से खिलवाड़ करता इंसान! *
अशोक अंजुम द्वारा लिखित व रामनारायण पाठक द्वारा निर्देशित नाटक ' यमराज ऑन अर्थ ' रविवार की शाम सूत्रधार द्वारा खगौल पूर्व मध्य रेलवे सीनियर सेकेंडरी स्कूल में दूसरी प्रस्तुति थी।
मंच संचालक प्रो प्रसिद्ध यादव ने अपने दमदार शैली से दर्शकों को नाटक की विषय- वस्तु से अवगत कराया, जिससे दर्शकों का नाटकों से लगाव शुरू से ही रहा और उत्सुकता बनी रही ।
अतिथियों को उद्घोषक ने स्वागत करते हुए कहा कि
आप आये तो बहारों ने लुटाई खुशबू ।
फूल तो फूल थे कांटों से भी आई खुशबू।
सौ चांद भी चमकेंगे तो क्या बात बनेगी !
आप आये तो इस रात की औकात बनेगी।।
इतना सुनते ही प्रेक्षागृह तालियों की आवाज़ से गूंज उठी।
" यमराज ऑन अर्थ " के माध्यम से वर्तमान प्रदूषण की भयावह स्थिति को दर्शाया गया है कि किस तरह आदमी अपने चन्द लोभ के कारण प्रकृति को नुकसान पहुंचा रहा है। आने वाले खतरों से बेफिक्र होकर वन संपदा से खिलवाड़ कर रहा है।प्रकृति से खिलवाड़ का खामियाजा बाढ़, सुखाड़ ,ग्लोबल असंतुलन जैसी समस्याएं पैदा हो रही हैं। जलाशय सूख रहें हैं।पर्वतीय क्षेत्रों के बर्फ पिघल रहे हैं।सबसे बड़ी दुखद है गंगा और यमुना नदियों की बदहाली।जिसे नाटक में बयां किया गया है। कूड़े कचरे , जंगलों , पहाड़ों समेत जंगल पुत्रों को को हानि की जा रही है।नाटक यह संदेश देने की कोशिश करता है और सोचें और संभल जाएं।
निर्देशकीय:यह नाटक ई सी आर उच्च माध्यमिक विद्यालय,खगौल के छात्र छात्राओं द्वारा इक्कीस दिवसीय थियेटर एक्टिंग वर्कशॉप में तैयार कराया गया था ।संभवत वे ऐसी नाटक पहली बार कर रहें हैं।बच्चें मध्य विद्यालय के हैं। उनके साथ काम करना बहुत ही अच्छा लगा। वे प्रतिभाशाली है। जितना बन पाया है कराया ।कुछ प्रायोगिक तौर पर आधारित दृश्य दिखाया है।यह पूरी तरह से आधुनिक शैली में मंचित किया गया है। करीब तीन दर्जन बच्चों के साथ काम करना एक चुनौती से कम नहीं था। फिर भी सबने मिल कर अच्छा अभिनय किया है।
प्रकाश ,साज सज्जा लाजवाब था और बैकग्राउंड संगीत नाटक के दृश्यों को साकार कर रहा था। रंग संयोजन जीशान आलम का अच्छा लगा।
सबसे बड़ी बात कि दर्शक अंत समय तक शांतिपूर्ण नाटक को देखते रहे।
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