सोशल ऑडिट करें। तकलीफ़ भ्रष्टाचारी को जरूर होगी।

 


 अगर ये जिम्मेवारी हर जिम्मेवार व्यक्ति ले ले तो बहुत हद तक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सकता है। आप अपने आसपास नज़र दौड़ाएंगे तो अनेक कल्याणकारी योजनाएं संचालित होती होगी। आप उस काम की गुणवत्ता, उपयोगिता को समझें। अब कोई भी सरकारी काम होता है, उसका प्राक्कलन बनता है और कार्य शुरू होने से पहले वहां योजनाओं के नाम सहित राशि भी शिलापट्ट में अंकित किया जाता है। आपके पास विद्यालय, अस्पताल ,वार्ड, पंचायत ,निगम ,विद्युत, रेलवे ,सड़क निर्माण, पुल निर्माण,अंचल ,प्रखंड ,थाना  आदि होंगें।  अगर हम अपने आस-पास नजर दौड़ाते हैं तो पाते हैं कि नीतियों का सही क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा है, कहीं इसका कारण भ्रष्टाचार है तो कहीं प्रशासन की सुस्ती।

हालाँकि सबसे बड़ा सवाल यह है कि इनसे मुक्ति के उपाय कौन से हैं? दीर्घकालिक उपाय तो राष्ट्रीय और व्यक्तिगत चारित्रिक उत्थान ही है।

लेकिन, यदि हम शासन व्यवस्था में सोशल ऑडिट को प्रोत्साहित और स्थापित करने का प्रयास करें तो तात्कालिक परिणाम मिलने की संभावना है।

कई राज्यों की ग्राम-पंचायतों में सोशल ऑडिट किया जा रहा है, लेकिन इसे और अधिक व्यापक एवं प्रभावी बनाने के लिये इसके बारे में लोगों को बताना होगा, उन्हें जागरूक बनाना होगा और उन्हें प्रशिक्षण देना होगा।इसमें पत्रकार, आरटीआई एक्टिविस्ट की अहम भूमिका होती है।

इसके साथ ही सोशल ऑडिट की अनुशंसाओं को लागू करने के लिये समयबद्ध और उचित कार्रवाई पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।जागरूक बनें ,जनहित का साथी बनें।


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