रतन टाटा के निधन से अपूर्णीय क्षति !
एक उद्योगपति के साथ साथ मानवतावादी थे। इन्होंने देश में कई अस्पताल ,शिक्षण संस्थानों को खोला। टाटा समूह के चेयरमैन और वरिष्ठ उद्योगपति रतन टाटा अब इस दुनिया में नहीं रहे। 86 साल की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले रतन टाटा का नाम हर देशवासी बड़े सम्मान से लेता है।
देश के सबसे बड़े औद्योगिक घराने के अंतरिम चेयरमैन और भारत के विकास के प्रति समर्पित रतन टाटा को कौन नहीं जानता। उनके जीवन के कुछ अनछुए पहलु हैं जिन्हें पीटर कासे ने अपनी किताब द स्टोरी ऑफ टाटा (1868-2021) में समाहित किया है। इस किताब में उन्होंने टाटा समूह के रतन टाटा के जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को समाहित किया ही है साथ ही उनके बारे में पिछले दिनों जो भी आर्टिकल या दूसरे कॉलमिस्ट का उनके प्रति विचार को भी अपनी किताब में जगह दी है।
पीटर कासे द्वारा लिखी इस किताब में रतन टाटा के जीवन के उन अनछुए पहलुओं के बारे में जानते हैं जो कम ही लोग जानते होंगे।रतन टाटा को अपने जीवन का सबसे पहला अनुभव उनकी दादी से मिला जिन्होंने उनका दाखिला कैपियन स्कूल में कराया था। इस स्कूल को वर्ष 1943 में एक जेसुएट पादरी, फादर जोसेफ सावल ने स्थापित किया था। रतन टाटा के हवाले से इस किताब में बताया गया है कि इस स्कूल में स्पोटर्स को काफी महत्व दिया जाता था लेकिन मुझे स्पोटर्स में बेहद कम रूचि थी। मुझे स्कूल में खेलकूद के बारे में ज्यादा याद नहीं है। हां मुझे यह अच्छी तरह से याद है कि मेरी दादी के पास एक बड़ी व पुरानी रॉल्स रॉयस कार हुआ करती थी। वह मुझे और मेरे भाई को उसी कार से स्कूल भेजती थी लेकिन हम दोनो भाइयों को उस कार में जाने पर बहुत शर्म महसूस होती थी। इसलिए हम अक्सर पैदल ही घर लौटते थे। बाद में जब हमने दादी को अपनी बात बताई तो लेडी नवाज बाई के ड्राइवर को हमें स्कूल से कुछ दूर पहले ही छोड़ने का निर्देश दिया ताकि हमारे सहपाठियों को ये लगे कि हमारी कार खराब हो गई है।
इस किताब में बताया गया है कि रतन टाटा पढ़ाई में बहुत अच्छे नहीं थे। दूसरे बच्चों की तरह वे पढ़ाने को लेकर उतने रोमांचित नहीं थे। रतन टाटा ने वर्ष 2010 में एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था कि पारसी समुदाय में अच्छी शिक्षा बेहद खास होती है। इसलिए समुदाय में बेहतर शिक्षा पर खास जोर दिया जाता था। स्कूल से आने के बाद आपको ट्यूशन जाना पसंद नहीं हो फिर भी आपको जाना मजबूरी थी। मेरे लिए पढ़ाई का वह दौर बेहतर कठिन था। लेकिन जब मैं पीछे मुड़ कर देखता हूं तो वह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ही है जिसकी बदौलत आज मैं इस मुकाम पर हूं। वह कहते हैं, बेहतर शिक्षा आपको डिग्री के साथ-साथ बेहतर अनुभव भी देती है। हालांकि स्कूल, कॉलेज कैंपियन, कैथेड्रल, कॉर्नेल और, बाद में, हार्वर्ड बिजनेस स्कूल (एचबीएस) में जब मैं था तो मुझे लगता था कि यह मेरे लिए भयानक था लेकिन आज जब मैं उससे काफी दूर निकल गया हूं तो यह मुझे एक सुखद एहसास ही दिलाता है।
रतन टाटा को कैपियन में कैमिस्ट्री के बजाए फिजिक्स में ज्यादा रुचि थी क्योंकि फिजिक्स में आपको सबसे बड़े प्रश्न पूछने के लिए आमंत्रित करता है लेकिन कैमिस्ट्री का दायरा अधिक सीमित है। अपनी कल्पना को छूने के लिए फिजिक्स आपकी सोच को आपके दिमाग के परे पहुंचाती है। रतन टाटा के अनुसार जब मैं नवीं क्लास में था तो यह दौर छात्र के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण दौर होता है जिसमें बच्चे को एक स्कूल से दूसरे स्कूल ट्रांसफर करने का जोखिम नहीं उठाया जा सकता है। लेकिन मेरे जीवन में मुझे इस जोखिम का सामना करना पड़ा। मुझे कैथेडल एंड जॉन कॉनन स्कूल में ट्रांसफर कर दिया गया जो मुंबई में था। इस स्कूल में भारतीय उद्योग के बड़े-बड़े नामी लोगों के बच्चे पढ़ते थे।
वर्ष 2009 में रतन टाटा ने कैथेड्रल के पूर्व छात्रों को संबोधित करने का मौका मिला। अपने संबोधन में उन्होंने ड्रीम इंडिया की बात कही। कहा कि भारत एक ऐसा देश है जहां हर एक भारतीय को अपनी योग्यता के आधार पर चमकने का अवसर मिलता है। हमारे देश में आपको जीने और नेतृत्व करने की कोशिश करनी होगी न कि अपने धन और प्रसिद्धि का दिखावा करने की। एक अंग्रेजी अखबार ने वर्ष 2011 में रतन टाटा के बारे में लिखा कि वे व्यापारिक समुदाय के कुछ वरिष्ठ सदस्यों में से हैं जो भव्य जीवन शैली में जीते हैं लेकिन आश्चर्य की बात है कि वे गरीबों के प्रति सहानुभूति रखते हैं और उनकी दशा सुधारने के प्रति चिंतित भी हैं।
द गार्जियन में वर्ष 2008 में रणदीप रमेश ने लिखा है कि कई मायनों में रतन टाटा एक आकस्मिक करोड़पति हैं। एक ऐसे प्रतिभाशाली उद्यमी हैं जिनके पास बच्चों के अलावा सबकुछ है। टाटा समूह ने धीरे-धीरे देश-विदेश में अपने व्यापार का साम्राज्य स्थापित किया लेकिन परिवार में वारिस की कमी रही।
इनके निधन से देश को अपूर्णीय क्षति हुई है।
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