अडानी को कोयला के लिए हसदेव जंगलों की अंधाधुंध कटाई !
' एक पेड़ माँ के नाम ' लगाने का क्या मतलब है जब लाखों पेड़ यार अडानी के नाम कटे जा रहे हैं। हसदेव जैसा नाम वैसा गुण है ,अब इसे रोदेव नाम इसका रख देना चाहिए। दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस देश के राष्ट्रपति व राज्य के सीएम आदिवासी हैं, उस प्रदेश के आदिवासियों को जंगलों में रहना मुश्किल हो गया है। छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में 137 हेक्टेयर में फैले जंगल में हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं। आने वाले दिनों में यहां 2.50 लाख से अधिक पेड़ काटे जाने हैं। ये पेड़ परसा ईस्ट और कांता बसन कोयला खदान के लिए काटे जा रहे हैं। पीईकेबी को अडानी समूह द्वारा संचालित राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित किया गया है।
एक फिल्म निर्माता, पर्यावरण कार्यकर्ता और शोधकर्ता एकता ने एक प्रेस बयान में कहा कि जैव विविधता से समृद्ध क्षेत्र हसदेव जंगल में 170,000 हेक्टेयर में फैला है, जहां से छत्तीसगढ़ के वन विभाग के अधिकारियों ने 15,000 से अधिक पेड़ों को काटना शुरू कर दिया है।यह जंगल हाथियों, भालू, सरीसृप और अन्य सहित जानवरों की कई प्रजातियों का घर है। साल और महुआ जैसे आर्थिक और आध्यात्मिक रूप से महत्वपूर्ण पेड़ हैं, जो स्थानीय लोगों की आजीविका का भी साधन हैं। वे लोग इन पेड़ों को देवता के रूप में पूजते हैं। इन पेड़ों को काट दिया गया है, जिन्हें 100 से अधिक वर्षों से संरक्षित और संरक्षित किया गया है।
संभावना है कि वन विभाग के अधिकारी पहले ही 30,000 से अधिक पेड़ काट चुके हैं और आने वाले दिनों में 250,000 अन्य पेड़ काटने का खतरा मंडरा रहा है।
छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के संयोजक आलोक शुक्ला ने कहा कि आदिवासियों के अधिकारों की लड़ाई के लिए विरोध जारी है, लेकिन आशंका है कि 841 हेक्टेयर में फैले परसा में पेड़ों की कटाई जल्द ही शुरू हो जाएगी।
पीईकेबी की कोयला खनन क्षमता क्रमशः 2 करोड़ टन प्रति वर्ष है। इनमें परसा में 50 लाख टन और कांटा में 70 लाख टन सालाना होगी। इस प्रक्रिया में कुल आठ लाख पेड़ काटे जाएंगे।
घने वन क्षेत्र के नीचे कुल पांच अरब टन कोयला होने का अनुमान है। पर्यावरण से सरकार को कितना प्रेम है, सहज समझा जा सकता है।
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