आचरण सदैव बनाकर रखें।

 

   



बाना पहिरे सिंह का, चलै भेड़ की चाल।
यह ऐसी गहना है कि आदमी अगर मुफलिसी में भी रहे और उत्तम आचरण हो तो भी अनुकरणीय है। आचरणहीन चाहे लाख हुलिया बदल लें ,लेकिन उसे कभी प्रतिष्ठा नहीं मिलती है।
कुछ राजनेताओं का चाल -  चलन ऐसा ही हो गया है।ऐसे लोगों से दूर रहने में ही भलाई है लेकिन दुर्भाग्य है कि हम इसे अपना आदर्श मान बैठे हैं।ऐसे लोगों का कोई चरित्र हैं ही नहीं । वेश्याओं से भी गिरे हुए लोग हैं।
संत कबीर दास ने आचरण की महिमा को बताते हुए लोगों को आचरणहीन होने से रोकने का संदेश दिया है।
बाना पहिरे सिंह का, चलै भेड़ की चाल।
बोली बोले सियार की, कुत्ता खावै फाल ।।
 सिंह की खाल में भेड़ की चाल चलने वाले और सियार की बोली बोलने वाले को कुत्ता जरूर फाड़ खायेगा। 
शब्द विचारे पथ चलै, ज्ञान गली दे पाँव।
क्या रमता क्या बैठता, क्या ग्रह कांदला छाँव ।।
- शब्द का विचार कर, ज्ञान मार्ग में पांव रखकर सत्य के पथ पर चले, फिर चाहे रमता रहे, चाहे बैठा रहे, चाहे आश्रम में रहे, चाहे पर्वतों या गुफाओं में रहे और चाहे वृक्ष की छाया में रहे - उसका सदा ही कल्याण है।
कवि तो कोटि कोटि हैं, सिर के मूड़े कोट।
मन के मूड़े देखि करि, ता संग लिजै ओट ।।
करोड़ों- करोड़ों हैं कविता करने वाले, और करोड़ों हैं सिर मुड़ाकर घूमने वाले वेषधारी, परन्तु ऐ जिज्ञासु! जिसने अपने मन को मूड़ लिया हो (नियंत्रित कर लिया हो), ऐसा विवेकी सत्गुरु देखकर तू उसकी शरण ले।।
भेष देख मत भूलये, बुझि लीजिये ज्ञान।
बिना कसौटी होत नहिं, कंचन की पहिचान।।
 सिर्फ संतों जैसा वस्त्र या वाह्य आवरण देखकर आकर्षित नहीं होना चाहिए, उनसे ज्ञान की बातें पूछनी चाहिए! तभी संगत करें, क्योंकि बिना कसौटी के सोने की पहचान भी नहीं होती।
झूठे सुख कौ सुख कहैं, मानत है मन मोद।
खलक चवीणाँ काल का, कुछ मुख मैं कुछ गोद।।
जिसे लोग सुख समझ रहे हैं, वो सुख सुख नहीं है।
कबीर के उक्त दोहों से समझें आचरण की महिमा .

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