दीपक ! मिट्टी से प्रकाश तक ..
तुझे बनाने वाले आज भी अंधेरे में हैं। कुम्हार मिट्टी को अच्छी तरह से गोंद कर चाक पर घुमाते हैं और तेरे स्वरूप को गढ़ते हैं। तुझे अच्छी तरह से धूप में सुखाते हैं, इसके बाद आवा में पकाते हैं, तब दीया बनता है।तुझे कुम्हार टोकड़ी में रखकर बाजार ले जाते हैं, वहां भी लोग मोलजोल करते हैं। उस कुम्हार की मेहनत ,दयनीय स्थिति पर किसी की नज़र नहीं जाती है। बिना जरूरतमंद को लोग हजारों के गिफ़्ट दे देते हैं लेकिन जरुरतमंद को उपेक्षा क्यों ? दीया के बाद रुई की बाती की बारी आती है।यह कपास से बनता है जो किसानों द्वारा तैयार होता है। अंत में तेल ।घी सरसों या तीसी की तेल में प्रायः दीप जलाते हैं।दीप जलाते समय हमें दीपक तैयार करने वाले कुम्हार ,किसानों को भी याद करना चाहिए, उनकी दशा को भी जानना चाहिए। तभी होगी शुभ दीपावली !
दीया बनाने के लिए मैं अपने गांव के एक बुजुर्ग कुम्हार को जान गंवाते हुए देखा है। जब मैं छोटा था गांव के एक बुजुर्ग कुम्हार दीया पकाने के लिए आम की बगीचा में लकड़ी तोड़ने गये थे।लकड़ी तोड़ते समय वे पेड़ से गिर पड़े थे। उस वक़्त मैं दोस्तों के साथ वही खेल रहा था, उन्हें किसी तरह उठाकर उनके घर लाये । घर वाले अस्पताल ले गए और दीपावली के समय उनकी मौत हो गई थी।वो त्रासदी मैं आज तक नहीं भुला हूँ और मैं दीवाली में यह सोचकर गमगीन हो जाता हूँ। उनके परिजन शायद इस हादसे को भूल गए होंगें, लेकिन मैं गहरे जख्मों को कभी नहीं भूलता हूँ।
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