नेता होला से का होला ,जब गांव के गांव भकोले बा !

  


गांधी जी बड़े अरमान व दूरदृष्टि से पंचायती राज की कल्पना किये थे। अपना काम अपने लोग सूझबूझ से करेंगे, लेकिन दांव उल्टा हो गया। पंचायती राज में प्रायः जनप्रतिनिधि इसे मुनाफा का पद समझ लिया।नतीजा, प्रतिनिधि बनते ही चमचमाती गाड़ी ,किरिच मार के कपड़ा ,आंखों पर चश्मा.. भले भकोले काहे न हो, लेकिन हर बात पर उसी की राय चलती है। कोई ऐसी योजना नहीं है जिस पर प्रतिनिधियों की गिद्ध दृष्टि न हो। अब इससे आगे गिरते हुए ब्लॉक में सीओ ,बीडीओ के यहां दलाली करता है। अब जहां के मुखिया भकोल हो ,वहां की जनता कैसी होगी ? सौ फीसदी भकोल , इसमें कोई दो राय नहीं है। वोट पैसे लेकर ,जाति देखकर देंगे तो भुगतना पड़ेगा ही। बेशर्मी से प्रतिनिधि कहता है कि " चुनाव में लगा हुआ अपनी पूंजी भी नहीं निकालें ।" भकचोंधर लोग हाँ में हां मिलाता है। अब दुनिया दिखावे में विश्वास करती है। भकचोंधर के गले में टाई बांध दें तो वो पढ़ा लिखा नहीं हो जायेगा।जब तक उसकी जुबान बन्द है तब तक रहस्य है, जुबान खुलते ही असलियत मालूम हो जाता है।32 फ़ीसदी कमीशन भकोल का है, बीडीओ,इंजीनियर, ठेकेदार  को भी चाहिए। बीच में पिसती है भोलीभाली जनता ।

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