बिहार में शराब से मौत का कहर ! पुलिस -प्रशासन की निष्क्रियता से सरकार की इक़बाल ख़त्म हो रही है।
नीतीश सरकार की शराबबंदी की विफलता का सबूत इससे बड़ा कुछ नहीं हो सकता है।सरकार ने नेक इरादे से शराबबंदी नीति लागू की थी लेकिन शराब माफिया व पुलिस की गठजोड़ ने इस इस लोकप्रिय नीति को कहीं के न छोड़ा। स्थानीय पुलिस की संरक्षण में ही बिहार में अवैध शराब का धंधा फलफूल रहा है।पुलिस प्रशासन शराबबंदी को कुबेर का खजाना समझकर अकूत सम्पति बनाने में लगे हुए हैं। पुलिस की निगाहें सिर्फ शराबियों को पकड़कर पैसा ऐंठने तक होती है। मद्य निषेध दिवस पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बड़ा एलान किया था। 2016 की पहली अप्रैल से बिहार में राज्य सरकार शराबबंदी को लागू हो गई । इस बाबत मुख्यमंत्री ने उत्पाद एवं मद्य निषेध विभाग को कार्ययोजना बनाने का निर्देश दिया था
शराबबंदी से संबंधित नई नीति भी पहली अप्रैल से लागू की गई । नशा के खिलाफ अभियान चलाने वाले और गांव में शराब की बिक्री बंद कराने वाले स्वयं सहायता समूहों को उन्होंने पुरस्कृत करने की घोषणा की थी।
बिहार में जहरीली शराब पीने से अलग-अलग जिले में अब तक 57 लोगों की मौत हो चुकी है. सीवान में और छपरा में कई लोगों ने दम तोड़ दिया. वहीं गोपालगंज में पिता-पुत्र की शराब पीने से हालत खराब हो गई ।
बिहार में भले ही शराबबंदी लागू हो. लेकिन ऐसा नहीं है कि लोग पी नहीं रहे हैं. शुरुआती दौर में केवल 9 लोगों की मौत की जानकारी मिली थी. लेकिन धीरे-धीरे मौत की संख्या बढ़ती जा रही है. बिहार में शराब के अवैध कारोबार तेजी से बढ़ रहे हैं और आम लोग इसके शिकार हो रहे हैं. हालांकि शासन-प्रशासन इसको नियंत्रित करने के लिए लगातार कोशिश कर रहा है.
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