गांव के झोपड़ीनुमा गांव से एशिया के फेमस 5 स्टार होटल तक का सफ़र





ये मधु कुमारी है. ब्रिटिश कोलंबिया कॉलेज ऑफ़ मैनेजमेंट, नॉएडा से होटल मैनेजमेंट से स्नातक की पढाई कर रही है. इस वर्ष जनवरी में जयपुर के होटल कॉन्टिनेंटल से छः माह का इंटर्नशिप कर चुकी है. वर्तमान में एशिया के फेमस होटल हयात पैलेस में कुछ माह के लिए प्रशिक्षण ले रही है और प्रशिक्षण के बाद वहीँ पर उसकी जॉब हो जाएगी. बिहार की राजधानी पटना के फुलवारीशरीफ के बहुत हीं पिछड़ा गांव नहर के चाट में बने झोपड़ीनुमा मकान में इसका परिवार निवास करते हैं, जहाँ बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. आज भी शौच के लिए बाहर जाना पड़ता है. 


जब यह 10 वर्ष की थी तब इसके पिता का इसके सर पर से हाँथ उठ गया. यह 10 भाई-बहनों में 9 वें नम्बर है. माँ आंगनवाड़ी में सहायिका हैं. पति के गुजर जाने के बाद माँ ने बहुत मेहनत और कष्ट से अपना पेट काट कर अपने सभी बच्चों को पाला-पोंसा है. कभी खेतों में कटनी करके तो कभी दिहारी मजदूरी करके अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाया है. माँ एक-एक पैसे को जोड़ कर अपने बच्चों को इस लायक बनाया है. 


मधु का गांव के झोपड़ीनुमा से एशिया के 5 स्टार होटल तक का सफ़र भी बहुत आसान नहीं रहा है. इस सफ़र में बहुत सी अड़चने आयी है. सबसे पहले तो परिवार और समाज का दबाव कि ये यह एक लड़की है. इतने बड़े शहर में कैसे जाएगी, कहां रहेगी, कैसा माहौल मिलेगा वगैरह-वगैरह. परिवार और समाज का दबाव भी लाज़मी है क्योकि जिस समाज से मधु आती है उस समाज में इसकी उम्र की लड़कियों की शादी हो जाती है. इसकी सभी सहेलियों की भी शादी हो चुकी है. कई के तो 2-3 बच्चे भी हो गए हैं. इसके साथ में पढ़ने वाली सहेलियों की भी शादी हो गयी है और कई बच्चे भी हैं. 


अगर मेरा अनुमान गलत नहीं है तो जिस परिवेश और गांव-गिरावं से ये आती है वहां इसकी उम्र की लड़कियां शायद हीं कुंवारी मिलेगी. माहौल इस प्रकार का है कि कई लड़कियों ने तो अपने पसंद से हीं अपने हीं गांव और आस पड़ोस में शादी के लिए उपयुत सम्बन्ध नहीं होने के बावजूद समाज और परिवार के खिलाफ जाकर शादी कर ली है. ऐसे माहौल में पली-बढ़ी मधु अपने आप को कैसे रोक पाई है वो तो वही जाने. लेकिन एक बात तो कहनी पड़ेगी कि कुछ तो बात इसमें है जो औरों लड़कियों से इसे अलग बनाती है. 


मधु इस परिवार, समाज और इस परिवेश से निकल कर अपनी शिक्षा-दीक्षा लेने वाली पहली लड़की होगी जो वह दकियानूसी सोंच को गलत साबित करेगी जो कहते हैं कि लड़कियां सिर्फ घर के चौका-बर्तन और शादी के बाद घर-गृहस्ती हीं काम है. हालांकि इस सोंच को गलत साबित करना भी आसान नहीं होगा मधु के लिए. क्योंकि जिस माहौल में वह पली बढ़ी हैं और जिस माहौल में अभी वह गयी है दोनों बहुत हीं बिल्कुल अलग माहौल है. यूँ कहें कि एक पूरब है तो एक पश्चिम. जहाँ गयी है वहां का माहौल घर से बिल्कुल हीं अलग है - कॉर्पोरेट कल्चर है. नए-नए और भिन्न-भिन्न संस्कृति के लोगों के बीच रहना और उनका अतिथि सत्कार करना. जिन लोगों के बीच मधु काम करती है वो भी पढ़े-लिखे और कल्चर्ड लोग होते हैं. 


मधु के लिए अब सबसे बड़ी चुनौती है कि अब वह अपने आप को दोनों माहौल के बीच कैसे सामंजसय बनाती है. गांव के झोपड़ीनुमा गांव से निकलकर 5 सितारा होटल तक पहुँच तो गयी है. यहां तक पहुँचाने में परिवारों और रिश्तारों में से किसी ने तो उसकी आउट ऑफ़ वे जाकर मदद की होगी. हो सकता है कई कुर्बानिया भी दी होंगीं. परिवार और समाज से लड़ाई भी की होगी और भला-बुरा भी सुना होगा. ऐसे में मधु के ऊपर कई जिम्मेवारियां भी आ जाती है. 


जिम्मेवारी ये कि :- 1. मधु को अपने आप को इस उच्चाई पर ले जाना चाहिए कि परिवार और समाज की अन्य लड़कियां भी ये कहे कि मैं भी मधु के समान बनना चाहती हूं. 2. मधु को अपने परिवार और समाज के प्रति Loyal बने रहना होगा ताकि बिना रोक-टोक उसे जब भी जरुरत हो मानसिक और आर्थिक सहयोग मिलता रहे. 3. पांच सितारा होटल के माहौल में मधु को अपने आप से एक Self Commitment करना होगा कि चाहे कुछ भी हो जाए मुझे अपने परिवार और समाज की नज़रों में एक आदर्श बेटी, बहन और लड़की बन कर दिखाना है. 4. अपने दिल को काबू में रखना होगा कि कहीं फिसले न, अगर फिसल गया तो मधु इस समाज की अन्य लड़कियों के लिए एक रास्ते का रोड़ा साबित हो सकती है. फिर कोई भी परिवार और समाज इस तरह का अपने बेटी और बहन के लिए जोखिम नहीं उठा सकता है. 


5. मधु को अपने दिमाग और शौक पर भी काबू रखना होगा कि जब वह कमाने लगे तो अपने कमाई को पांच सितारा होटल के चकाचौध में गुम न होकर अपने परिवार और खुद को बेहतर बनाने में निवेश करें. क्योकि देखा गया है कि जब व्यक्ति कमाने लगता है तो वो अपने शौक पूरे करने में लग जाता है और सबसे पहले उसी परिवार और रिश्तेदार को लात और ठोंकर मारता है जो  उसको बढ़ाने में मदद करता क्योंकि जो भी मदद करने वाला हांथ होता है उसे उसके बेहतरी के लिए रोक-टोक भी करता है. यही रोक-टोक उसको बंधन और उसकी आज़ादी को छिनने जैसा महसूस होता है. उसे लगता है कि अब तो मैं कमाने लगा हूं. अब मुझे उन लोगों की जरुरत हीं क्या है? अगर ऐसा हुआ तो उस दिन उस परिवार और रिश्तेदार के लिए काला दिन साबित होगा. फिर वह परिवार और रिश्तेदार चाह करके साहस नहीं जुटा पायेगा. 


सोशल मीडिया पर एक बात बहुत ट्रेंड कर रहा है कि “बहुत हो गया साबित करना, अब कुछ भी  साबित करना छोड़ दिया है-मैं गलत हूं बस बात ख़तम” यह मधु जैसे नवयुवक-नवयुवतियां की उम्र के लोगों के लिए बहुत हीं महत्वपूर्ण है. अगर मधु भी इस सोंच में आ गयी तो फिर जो परिवार अपनी बेटी-बहन को आगे बढ़ाने के लिए सोंच रखते हैं उन लोगों के मुंह पर तमाचा होगा कि और भेजो बाहर अपनी बहन-बेटी को. हो गया न सत्यानाश. जितनी मुंह उतनी बातें शुरू हो जाति है. मधु के लिए यही चुनौती होगी कि अभी तो बहुत कुछ साबित करना बाकी है अभी से हीं इस प्रकार के सोंच में पड़ जायेंगे तो ये भी उन लड़कियों की तरह हीं हो जायेगी जो निकली तो थी अपने पंख फैला कर आसमान में उड़ने के लिए लेकिन हम दफ़न हो गये ज़मीन में अपने दिल, दिमाग और शौक को पूरा करने के लिए.

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