डॉ गोरेलाल यादव की अध्यक्षता में शौर्य दिवस समारोह मनाया गया।

 

          



 अहीर रेजीमेंट बनाने की  मांग  की गई!

  पूर्व आईएस डॉ गोरेलाल यादव ने अध्यक्षता किये। यादव ने चर्चा में बताया कि अपनी जान कुर्बानी देकर वीरों ने देश को बचाया। साथ ही देश में अहीर रेजीमेंट की स्थापना की मांग की इस अवसर पर डॉ महेंद्र सिंह, कपिलेश्वर यादव ,आरबी यादव ,रूबी यादव ,राजेंद्र राय, सुरेश प्रसाद,दीपक प्रसाद यादव ने भी अपनी बात रखी।

 120 जवानों ने बचाया लद्दाख, 1300 चीनी सैनिकों को यहां उतारा था मौत के घाट

यह वह  जगह है जहां 1962 में भारत और चीन के सैनिकों के बीच ऐसी लड़ाई लड़ी गई, जो दुनियाभर की सेनाएं एक मिलास की तौर पर याद करती हैं। इस लड़ाई में 120 भारतीय जवानों ने 1300 चीनी जवानों को मौत के घाट उतार कर चीन से लद्दाख को बचाया था।  

- चीन का तिब्बत पर हमला, फिर कब्जा और दलाई लामा के भारत में राजनैतिक शरण लेने के बाद से भारत और चीन के रिश्तों में बेहद खटास आ चुकी थी। 

-  फिर 18 नवंबर, 1962 की रात अंधेरे और बर्फबारी के बीच चीन ने दक्षिण लद्दाख के रेज़ांग ला में हमला कर दिया था। उस वक्त चुशूल में 13 कुमाऊं रेजीमेंट तैनात थी और रेज़ांग ला में इस रेजिमेंट की एक टुकड़ी मौजूद थी, जिसका नाम था चार्ली कंपनी।

- इस कंपनी को कमांड कर रहे थे मेजर शैतान सिंह। युद्ध के दौरान जब भारतीय सैनिकों की गोलियां ख़त्म हो गईं थीं, तब उन्होंने चाकू-छुरे और पत्थरों का इस्तेमाल करके दुश्मन को मारा था। अंत में भारतीय सैनिक, चीन के सैनिकों के ख़िलाफ खाली हाथ भी लड़ते रहे थे।

शहीद हुए थे भारत के 120 जवान 

- 13वीं कुमाऊं रेजीमेंट का एक नाम वीर-अहीर भी है। क्योंकि इसमें ज़्यादातर मौकों पर राजस्थान और हरियाणा के यादव ही भर्ती किए जाते हैं। इसलिए रेज़ांग ला को अब अहीर धाम भी कहा जाता है।

- ये लड़ाई कितनी भयानक थी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि 120 भारतीय सैनिकों में से 114 सैनिक अपनी जगह लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इनमें से 5 को बेहद ज़ख्मी हालत में चीन ने बंदी बना लिया था।

इन बचे हुए जवानों में से एक सिंहराम ने बिना किसी हथियार और गोलियों के चीनी सैनिकों को पकड़-पकड़कर मारना शुरु कर दिया। मल्ल-युद्ध में माहिर कुश्तीबाज सिंहराम ने एक-एक चीनी सैनिक को बाल से पकड़ा और पहाड़ी से टकरा-टकराकर मौत के घाट उतार दिया। इस तरह से उसने दस चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।

डॉ महेंद्र सिंह ने बताया कि हम सभी को वीरों की शहादत को अपने हृदय में संजोये रखें और देशभक्ति की प्रेरणा लें।


 


 गोरेलाल यादव की अध्यक्षता में शौर्य दिवस समारोह मनाया गया।
अहीर रेजीमेंट बनाने की  मांग  की गई!
  पूर्व आईएस डॉ गोरेलाल यादव ने अध्यक्षता किये। यादव ने चर्चा में बताया कि अपनी जान कुर्बानी देकर वीरों ने देश को बचाया। साथ ही देश में अहीर रेजीमेंट की स्थापना की मांग की इस अवसर पर डॉ महेंद्र सिंह, कपिलेश्वर यादव ,आरबी यादव ,रूबी यादव ,राजेंद्र राय, सुरेश प्रसाद,दीपक प्रसाद यादव ने भी अपनी बात रखी।
120 जवानों ने बचाया लद्दाख, 1300 चीनी सैनिकों को यहां उतारा था मौत के घाट
यह वह  जगह है जहां 1962 में भारत और चीन के सैनिकों के बीच ऐसी लड़ाई लड़ी गई, जो दुनियाभर की सेनाएं एक मिलास की तौर पर याद करती हैं। इस लड़ाई में 120 भारतीय जवानों ने 1300 चीनी जवानों को मौत के घाट उतार कर चीन से लद्दाख को बचाया था।  
- चीन का तिब्बत पर हमला, फिर कब्जा और दलाई लामा के भारत में राजनैतिक शरण लेने के बाद से भारत और चीन के रिश्तों में बेहद खटास आ चुकी थी। 
-  फिर 18 नवंबर, 1962 की रात अंधेरे और बर्फबारी के बीच चीन ने दक्षिण लद्दाख के रेज़ांग ला में हमला कर दिया था। उस वक्त चुशूल में 13 कुमाऊं रेजीमेंट तैनात थी और रेज़ांग ला में इस रेजिमेंट की एक टुकड़ी मौजूद थी, जिसका नाम था चार्ली कंपनी।
- इस कंपनी को कमांड कर रहे थे मेजर शैतान सिंह। युद्ध के दौरान जब भारतीय सैनिकों की गोलियां ख़त्म हो गईं थीं, तब उन्होंने चाकू-छुरे और पत्थरों का इस्तेमाल करके दुश्मन को मारा था। अंत में भारतीय सैनिक, चीन के सैनिकों के ख़िलाफ खाली हाथ भी लड़ते रहे थे।
शहीद हुए थे भारत के 120 जवान 
- 13वीं कुमाऊं रेजीमेंट का एक नाम वीर-अहीर भी है। क्योंकि इसमें ज़्यादातर मौकों पर राजस्थान और हरियाणा के यादव ही भर्ती किए जाते हैं। इसलिए रेज़ांग ला को अब अहीर धाम भी कहा जाता है।
- ये लड़ाई कितनी भयानक थी, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि 120 भारतीय सैनिकों में से 114 सैनिक अपनी जगह लड़ते हुए शहीद हो गए थे। इनमें से 5 को बेहद ज़ख्मी हालत में चीन ने बंदी बना लिया था।
इन बचे हुए जवानों में से एक सिंहराम ने बिना किसी हथियार और गोलियों के चीनी सैनिकों को पकड़-पकड़कर मारना शुरु कर दिया। मल्ल-युद्ध में माहिर कुश्तीबाज सिंहराम ने एक-एक चीनी सैनिक को बाल से पकड़ा और पहाड़ी से टकरा-टकराकर मौत के घाट उतार दिया। इस तरह से उसने दस चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया।
डॉ महेंद्र सिंह ने बताया कि हम सभी को वीरों की शहादत को अपने हृदय में संजोये रखें और देशभक्ति की प्रेरणा लें।

 

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