भारत में शिक्षा में खर्च जीडीपी का 6 फ़ीसदी करना चाहिए।

 

    


भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता को लेकर कई बार चर्चाएं हुई हैं लेकिन इसके लिए बजट में बदलाव की जरूरत है। भारतीय उद्योग परिसंघ  ने हाल ही में यह बताया कि भारत को शिक्षा पर अपने खर्च को तत्काल बढ़ाकर जीडीपी का 6% करना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों से शिक्षा पर खर्च में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है और यह 2.7% से 2.9% तक स्थिर रहा है। वहीं ज्यादातर विकसित देशों का शिक्षा पर खर्च जीडीपी के 5 से 7% के बीच होता है जो भारत से कहीं अधिक है।
भारत में शिक्षा के क्षेत्र में सुधार के लिए और अधिक निवेश की आवश्यकता है। रिपोर्ट में यह साफ तौर पर देखा गया है कि भारत का शिक्षा खर्च वैश्विक मानकों से काफी पीछे है। भारत को तुरंत अपने शिक्षा बजट को बढ़ाकर इसे वैश्विक मानकों के अनुरूप लाना चाहिए।पिछले 6 वर्षों से भारत का शिक्षा पर खर्च जीडीपी के 2.7% और 2.9% के बीच स्थिर रहा है। जबकि विकसित देशों में यह खर्च 5% से 7% तक है। भारत में माध्यमिक स्कूलों में नामांकन दर 79.6% है जबकि अन्य देशों में यह दर कहीं अधिक है। उदाहरण के तौर पर ब्रिटेन, स्वीडन और यूएसए में यह दर 98% से 100% के बीच है।
भारत को चीन, ऑस्ट्रेलिया, स्वीडन और यूके के मॉडल से सीखने की आवश्यकता है। चीन के मॉडल से छात्र तनाव कम करने के तरीके जबकि ऑस्ट्रेलिया और इंडोनेशिया से हाशिये पर पड़े समूहों को शिक्षा में शामिल करने के तरीके अपनाए जा सकते हैं।  स्वीडन और अमेरिका ने अपने शिक्षा खर्च को बढ़ाया है जबकि भारत में इस खर्च में कोई खास वृद्धि नहीं देखी गई। स्वीडन ने 6.7-6.9% और अमेरिका ने 5.3-5.6% खर्च किया है।भारत में शिक्षा क्षेत्र के सुधार के लिए शिक्षा पर निवेश को बढ़ाने की जरूरत है। जब तक देश शिक्षा पर उचित निवेश नहीं करेगा तब तक वैश्विक मानकों के हिसाब से सुधार मुश्किल है।

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