दवाइयों पर जीएसटी !इलाज में मरीज हो रहे कंगाल !
सरकार द्वारा दवाइयों पर जीएसटी लगाना ,गरीब मरीजों को जीते जी मार देना है। आयुष्मान कार्ड में रोगों की लिमिटेशन है और तो और करोड़ों के फर्जीवाड़ा भी हुए । कई लोग आंखों के ऑपरेशन करवाकर सदा के लिए नेत्रहीन हो गए। देश में एक तरफ चिकित्सा सेवाएं आम आदमी की पहुंच से दूर हो रही हैं, तो दूसरी तरफ दवाइयों पर लगातार कर बढ़ाया जा रहा है। सरकार की लोकलुभावन योजनाओं के बावजूद महंगी दवाइयां खरीदना रोगी के लिए मजबूरी है। आखिर उसके सामने कोई विकल्प भी तो नहीं। या तो वह जमीन-जेवर बेच कर अपनी जान बचाए या फिर घर पर लाइलाज मर जाए। यह भयावह स्थिति है। दो राय नहीं कि सस्ती दवाइयां उपलब्ध कराने के लिए कुछ कदम जरूर उठाए गए
सच्चाई यह है कि बीमारियों के उपचार के दौरान अस्पतालों के बेतहाशा शुल्क और गैर-जरूरी चिकित्सा जांच में मरीज कंगाल होने लगता है। कई बार तो वह अपना इलाज कराने में असमर्थ हो जाता है। सरकार के दावे और हकीकत में कितना अंतर है, यह अस्पतालों में साफ दिखता है। इलाज पर खर्च दोगुना से अधिक हो गया है। इसकी बड़ी वजह दवाओं पर जीएसटी लगाया जाना भी है। जीवनरक्षक दवाओं को छोड़ दें, तो कई अधिकतम जीएसटी के दायरे में हैं। मनोरोग से संबंधित दवाइयों पर भी बारह फीसद जीएसटी लगाई गई है।
कई गंभीर रोगों की दवाइयां पहले से ही महंगी हैं। ऐसे में मानसिक चिकित्सा से संबंधित दवाओं पर बारह फीसद जीएसटी उन मरीजों से अन्याय है, जो जीवन की जद्दोजहद में घिर कर किसी कारण मनोरोग के शिकार हो गए हैं। आर्थिक दबाव से पहले ही बेहाल ऐसे मरीज अगर बीच में ही अपना इलाज छोड़ रहे हैं, तो यह निस्संदेह चिंता का विषय है।
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