तात । लाज शर्म - त्याग ,भोगहूं सत्ता सुख । - प्रो प्रसिद्ध कुमार।

   


श्रम करने में शर्म आये तो राजनीतिक शरण में जाये ।अगर सत्ता सुख भोगना है तो सत्ता में जाये। चाहे जितनी बार दलबदल क्यों न करना पड़े। जहां सत्ता वहां शरीर ।  नश्वर काया और झूठी माया का क्या भरोसा ? कब शिखर से शून्य हो जाये । जनता की सेवा करने से अच्छा , सुप्रीमो की गणेश परिक्रमा है। सुप्रीमो के नाम का माला जाप करना है। अपनी तो कोई हैसियत है नहीं ,बाबा नाम केवलम के तर्ज पर यशोगान करना है। बात बात पर सफाई से झूठ बोलने की आदत होनी चाहिए।  ताकतवर को चरणपादुका उठाएं और कमजोर को डराएं।  ऐसा रंग बदले की गिरगिट भी शरमाये । नियत साफ हो न हो ,कपड़ा साफ पहनें । चेहरे पर डेंटिंग पेंटिंग चकाचक हो , इससे उम्र छुप जाती है।कब्र में पांव लटके हुए भी चिर यौवन लगे। कठफोड़वा की तरह कठजीव हो । कोई मरे , कोई जिये ,अपनी दुकान चले । सिद्धान्त को सुदामा की तन्दुल की गठरी जैसे कांख में छुपा कर रखें । आंखों में घड़ियाली आंसू हो या आधुनिक युग में आंखों में कुछ केमिकल लगायें।यकीनन आंसू की धारा बह जाएंगे। विज्ञान का जड़त्व का नियम लागू नहीं होता ,गतिशील बने रहे ,अंगद की तरह एक ही जगह पांव जमाये रखने की जरूरत नहीं है । पैरों में शनि ग्रह का वास हो ।एक क्षण यहां तो दूसरे जगह कहीं और। दुल्हन की तरह कभी नैहर ,कभी ससुराल। बदचलन की तरह कभी कभी यार के यहां। ये सब कला है तो किसी की साँचा में सहज ढल सकते हैं ,नहीं तो राजनीति से विरक्त होकर सन्यासी बन जाएं। भोलीभाली जनता की कंधे पर कोई धूर्त हाथ रख दे तो लगता है कि अहिल्या उद्धार हो गई।भले पीठ पीछे माँ बहन एक क्यों न कर दे। छल कपट करने वाले महाभिखरियों से कोई कुछ पाने की हसरत करता है तो वो अज्ञानी है। अपना बुखार भी नहीं देगा। आदमी के चेहरा नहीं,चाल चलन को देखें ,बिल्कुल नंगा नज़र आएगा।

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