अब बनियों बबुआन से हिसाब- किताब ली का -पूर्व मंत्री आर के सिंह।
आपकी राजनीतिक समीक्षा में गड़बड़ी है । आप भाजपा को और इनके कुछ नेताओं प्रदेश अध्यक्ष जायसवाल, सुशील सिंह, नित्यानंद राय ,सम्राट चौधरी आदि को खुद सहित अन्य क्षेत्रों में पराजित होने के लिए जिम्मेवार ठहरा रहे हैं लेकिन सबसे महत्वपूर्ण कारण आपकी जातीय गर्मी बबुआन होने का है।हालांकि ये सब अब नहीं रहा केवल आप जैसे समन्तियों के मन में भ्रमवश रह गया है। आरा चुनाव के समय जब माले उम्मीदवार कॉम सुदामा प्रसाद के आपके कामों का हिसाब मांग था तब भरी सभा में बनिया जाति का उपहास करते हुए कहा था कि" अब बनियों बबुआन से हिसाब किताब ली का हो ? यही बात न सिर्फ बनिया समाज को बल्कि पूरे वंचित समाज को चुभ गयी और नतीजा यही कांटा चुनाव में जनता ने चुभा दी। एक आईएस पूर्व केंद्रीय मंत्री होकर बबुआन जैसे शब्द कहकर खुद को श्रेष्ठतम होने का दम्भ भरने की बुद्धि कहाँ से आ गई।मेरे पड़ोसी वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर जी आपके स्वजातीय हैं और आपके पराजय की समीक्षा से ये सहमत होते हुए आपको एक ईमानदार ,बुद्धिमान मानते हैं।मुझे इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना है लेकिन जिसके मन में जाति विशेष के लिए पूर्वाग्रह हो वो ठीक से काम क्या करेगा ? किशोर जी आप भी इनकी समीक्षा में बबुआन शब्द को भूल गए थे। एक बनिया बबुआन को कैसे पटककर उसकी हेकड़ी बन्द कर दी?यही लोकतंत्र है।मुझे लगता है कि बबुआन लीला वाले लोग नरेन्द्र मोदी जी को भी पीठ पीछे ऐसे ही कहते होंगें। जो भी हो मोदी के आगे सबकी बबुआन घुस गई है।
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