न जागीर रहेगा ,न जवानी रहेगी - प्रो प्रसिद्ध कुमार।
गुरुर किस बात की ,न निशानी रहेगी ।
छल - कपट, झूठ , ये बेईमानी किस बात की
ढलता है ये सूरज ,तू भी ढल जायेगा
जिसके लिए किया कुकर्म
वही मुँह में आग लगायेगा।
तन के गहने उतार लेंगे अपने
क़फ़न के सिवाय ,कुछ न साथ जायेगा
जल राख तू बन जायेगा
धुँआँ में उड़ जायेगा
न तू याद आएगा ,न कोई दीवानी रहेगी ।
न जागीर रहेगा ,न जवानी रहेगी ।
हिसाब एक -एक का चुकाना पड़ेगा
जैसी की करनी ,भरना पड़ेगा ।
मदमस्त है दौलत में
ये न काम आयेगा ।
नेकी बदी ही तेरे साथ जायेगा
संभालो होश अभी भी
कुछ न बिगड़ा है
बाद में तो हाथ ही मलना है ।
न समझा आदमी को आदमी
महान बनता है ।
लानत है तेरी खुदगर्जी पर
इंसान बनता है ।
जाति धर्म में बांटकर
धर्मात्मा बनता है
आदमी का खून पीकर
महात्मा बनता है ।
काल भी है तेरे पीछे
तू भी नहीं बचेगा
अभी कर ले जो चाहे
तेरी मनमानी नहीं चलेगी ।
न जागीर रहेगा ,न जवानी रहेगी
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