सत्ता संरक्षित है शिक्षा माफिया ! निजी स्कूलों की मनमानी पर सरकार मौन !

    


  शिक्षा माफियाओं पर सरकार कड़ी कार्यवाई करे।

सरकार को बालू माफिया, शराब माफिया दिखती है लेकिन शिक्षा माफिया नहीं। ये शिक्षा माफिया बड़े बड़े राजनीतिज्ञ या इसे सहयोग करने वाले हैं। ये सत्ता संरक्षित है। क्षेत्रों में राजनेता, अधिकारी भ्रमण करते हैं लेकिन कभी भी इस पर जनता से कुछ नहीं पूछते हैं और ना ही निजी स्कूलों से ही।

सरकार की छूट के कारण ही निजी विद्यालय मुनाफाखोरी पर उतारू है।  नियम कानून फ़ाइलों में दब कर रह गई , जनता कराह रही है।   20 से 30 पेज की प्रथम, केजी कक्षा की किताबों पर 149 से 230 रुपए तक रेट अंकित है। ये किताबें उसी जगह मिलेंगी, जिसका पता स्कूल बताता है। वही सरकारी व केंद्रीय विद्यालयों की वर्ग प्रथम की सभी पुस्तकें 200 से 250 में हो जाती है।

नर्सरी की नई किताबें तो ऐसी है, जिनमें एक पेज पर केवल 'ए फॉर एपल' ही लिखा है। सरकार भले ही नई शिक्षा नीति से तमाम परिवर्तन का ढिंढोरा पीट रही हो, लेकिन इन स्कूलों की निगरानी का कोई तंत्र नहीं है। कक्षा 1 से 8 तक की मान्यता होने के बावजूद यहां पर अवैध रुप से  एलकेजी व यूकेजी की कक्षाएं संचालित होतीं हैं।

इनके जरिए भी इन स्कूलों की बड़ी कमाई होती है। ज्यादातर जगहों पर अभिभावकों को किताबें स्कूल के अंदर से या मनचाही दुकानों पर उपलब्ध कराई जा रही है, अब किताबें बेचने के तरीकों में थोड़ा बदलाव किया गया है। अब यह किताबें मिलने का स्थान स्कूल प्रबंधक खुद बता रहा है। अभिभावक जब बच्चो को दाखिला दिलाने आते है तो ठिकाने की जानकारी दे दी जाती है। ये काम ज्यादातर उन स्कूलों में हो रहा है, जिनके पास सीबीएससी की मान्यता है।

प्राइवेट स्कूलों की मनमानी तो यह है कि यह हर वर्ष नए सिलेबस की किताबें लगा रहे है। ऐसे में अगर किसी का बच्चा दूसरी कक्षा में पढ़ता है तो पहली कक्षा वाले बच्चे के काम यह किताबें नही आएंगी। वहीं एक अप्रैल से स्कूलों में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हो गया है। स्कूलों में दाखिला प्रक्रिया भी जोरों पर चल रही है।

परन्तु अभी तक शिक्षा विभाग ने किसी भी निजी स्कूल पर कार्रवाई नहीं की है। जबकि अधिकारियों को केवल स्कूल में जाकर छापेमारी करनी है, उन्हें किताबों के ढेर मिल जाएंगे। वहीं स्कूलों में भी पढ़ाने वाले शिक्षकों की शैक्षिक योग्यता के कोई मानक तय नहीं है। यहां कम शैक्षिक योग्यता वाले अप्रशिक्षित युवक-युवतियों को शिक्षण कार्य में लगाया जाता है। इससे इस तरह के शिक्षकों को कम वेतन देकर अधिक मुनाफा कमा लेते हैं। इस कारण इस पर नियंत्रण नहीं हो पा रहा है।

किताबो में चल रहा कमीशन का खेल कार्रवाई के नाम पर शिक्षा विभाग फेल  है । स्कूल खुलते ही शिक्षा माफियाओं ने बच्चो के परिजनों की जेबों पर डाका डालना शुरू कर दिया है। निजी स्कूलों द्वारा उनके मनचाहे प्रकाशकों की कापी किताबें लेने के लिए परिजनों पर दबाव बनाया जा रहा है। इनमें शहर के अधिकांश स्कूल शामिल है।

जिन स्कूलों में बच्चो को एनसीईआरटी की किताबें लगानी चाहिए, वे निजी प्रकाशकों की किताबें पढ़ने को मजबूर कर रहे है। क्योंकि प्रकाशकों की और से स्कूलों को मोटा कमीशन दिया जा रहा है। यह कमीशन 30से 50 फीसद है। किताबें कौन से प्रकाशक की लगेगी यह भी कमीशन पर निर्भर है।

शिक्षा माफियाओं पर सरकार अविलंब रोक लगाए।

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