राजेश कुमार का नाटक "लोकतंत्र के मुर्गे" समसामयिक!

    


 



अभी गिरगिट क्षेत्रों में रंग बदलकर आएंगे और आपके बहुत बड़े हितैषी, शुभचिंतक नज़र आएंगे। ऐसे गिरगिटों को पद और पावर में रहते हुए भी देखें होंगें।कल्पना कीजिए उस समय का , क्या जो चुनाव के समय दिखता है वैसा पद पर रहते दिखता है? हुजूर के मूड देखकर लोग मिलते हैं।अगर मूड खराब है तो बिना मिले अपनी बातें कहे बैरंग लौट आते हैं। ऐसे ही पटना में जन्मे महान नाटककार राजेश कुमार राय की समसामयिक  नाटक   " लोकतंत्र के मुर्गे" से अवगत करा रहा हूँ।नाटककार आपसे कुछ कह रहे हैं, इसे समझें।

यह नाटक समकालीन भारतीय लोकतंत्र में व्याप्त विसंगतियों और खोखलेपन पर तीखा व्यंग्य करता है। नाटक का केंद्र एक गाँव है जहाँ पंचायत चुनाव होने वाले हैं। इस चुनाव में दो मुख्य उम्मीदवार हैं - एक दबंग और भ्रष्ट व्यक्ति, और दूसरा एक साधारण और ईमानदार दिखने वाला व्यक्ति।

नाटक दिखाता है कि कैसे चुनाव जीतने के लिए दोनों उम्मीदवार हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं - धन का लालच, जाति और धर्म का दुरुपयोग, और यहाँ तक कि हिंसा का सहारा भी लेते हैं। "लोकतंत्र के मुर्गे" शीर्षक स्वयं ही एक व्यंग्यात्मक टिप्पणी है, जो मतदाताओं को मुर्गे की तरह दर्शाती है जिन्हें अपनी पसंद के लिए फुसलाया या डराया जा सकता है।

नाटक यह भी उजागर करता है कि कैसे आम आदमी, अपनी गरीबी और अशिक्षा के कारण, इन भ्रष्ट नेताओं के चंगुल में आसानी से फंस जाता है। उन्हें झूठे वादे और सपने दिखाए जाते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद नेता उन्हें भूल जाते हैं।

अंततः, नाटक सच्चाई से भरपूर तस्वीर पेश करता है कि कैसे भारतीय लोकतंत्र अपने आदर्शों से भटक गया है और सत्ता हासिल करने का एक साधन मात्र बनकर रह गया है। यह दर्शकों को सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वास्तव में आम आदमी की आवाज सुनी जाती है, या वह केवल एक मोहरा बनकर रह गया है।

"लोकतंत्र के मुर्गे" भारतीय लोकतंत्र की कमजोरियों, भ्रष्टाचार और मतदाताओं की लाचारी पर एक शक्तिशाली और मार्मिक व्यंग्य है।

Comments

Popular posts from this blog

डीडीयू रेल मंडल में प्रमोशन में भ्रष्टाचार में संलिप्त दो अधिकारी सहित 17 लोको पायलट गिरफ्तार !

जमालुद्दीन चक के पूर्व मुखिया उदय शंकर यादव नहीं रहे !

यूपीएससी में डायरेक्ट लेटरल एंट्री से बहाली !आरक्षण खत्म ! अब कौन धर्म खतरे में है !