पानी से दूध सस्ता ! देश में पशुपालकों के उत्पाद की मिले उचित मूल्य । प्रो प्रसिद्ध कुमार, विभागाध्यक्ष, अर्थशास्त्र।
"दूधो नहाओ, पूतो फलो" एक पारंपरिक भारतीय आशीर्वाद है। इसी से दूध की महत्ता को समझा जा सकता है।यह आशीर्वाद किसी व्यक्ति के लिए समृद्धि, स्वास्थ्य और वंश वृद्धि की शुभकामना व्यक्त करता है। यह अक्सर बुजुर्गों द्वारा छोटों को दिया जाता है।
दूध माँ की गर्भ से लेकर जीवन की अंतिम समय तक परमावश्यक है। बच्चे, बीमार, युवा ,बुजुर्ग सभी की पहली पसंद दूध होती है। पहलवानी करनी हो,दौड़ लगानी हो या चुस्त दुरुस्त ,निरोग रहना हो तो दूध पहली आवश्यकता है ।इसके बावजूद इसके उत्पादक ,उपेक्षित व दीन - हीन हैं तो सरकार को इसे सुदृढ़ करने का उपाय ढूंढना चाहिए।
एक तरफ बन्द बोतल की एक लीटर पानी की लागत व एक लीटर दूध की लागत की तुलना कर लें तो मालूम हो जाएगा कि बढ़ती महंगाई के हिसाब से दूध की कीमत और अधिक होनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो सकता है ,क्योंकि पशुपालक संगठित नहीं है। इसे एक जाति विशेष ग्वाला के पेशा के रूप में देखा जाता है लेकिन सच्चाई है कि आज हर जाति ,वर्ग,धर्म के लोग पशुपालन कर रहे हैं। पशुपालन एक व्यवसाय के रूप में किसी विशेष जाति तक सीमित नहीं है, और विभिन्न सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि के लोग इसमें शामिल हैं।
वर्तमान में भारत में दूध की कीमत अलग-अलग ब्रांड, दूध के प्रकार और क्षेत्र के आधार पर भिन्न होती है।
कुछ सामान्य कीमतें (लगभग) इस प्रकार हैं:
अमूल ताज़ा लगभग ₹55-₹56 प्रति लीटर
अमूल गोल्ड (फुल क्रीम दूध): लगभग ₹67-₹68 प्रति लीटर
मदर डेयरी टोन्ड दूध: लगभग ₹55-₹56 प्रति लीटर
मदर डेयरी फुल क्रीम दूध: लगभग ₹67-₹68 प्रति लीटर
गाय का दूध (खुला या असंगठित क्षेत्र): ₹40-₹60 प्रति लीटर तक हो सकता है, यह क्षेत्र और गुणवत्ता पर निर्भर करता है।
पटना, बिहार में दूध की कीमतें -
गाय का दूध: लगभग ₹51-₹56 प्रति लीटर
अन्य ब्रांड और प्रकार के दूध की कीमतें भी इसी सीमा के आसपास हो सकती हैं।
पानी - सामान्य पैकेज्ड पेयजल (जैसे बिसलेरी, किनले, एक्वाफिना): ₹20 से ₹30 प्रति लीटर।
प्रीमियम प्राकृतिक खनिज पानी (जैसे हिमालय, वेदिका): ₹50 से ₹80 प्रति लीटर या उससे अधिक।
विशेषता वाला पानी (जैसे क्षारीय पानी): ₹60 से ₹100 प्रति लीटर या उससे अधिक।
दूध की कीमत कितनी होनी चाहिए?
दूध की "उचित" कीमत एक जटिल विषय है जो कई कारकों पर निर्भर करती है:
उत्पादन लागत: इसमें पशुधन का चारा, श्रम, पशु चिकित्सा देखभाल, बिजली, परिवहन और अन्य परिचालन खर्च शामिल हैं। किसानों को अपनी लागतों को कवर करने और कुछ लाभ कमाने के लिए पर्याप्त कीमत मिलनी चाहिए।
उपभोक्ता की वहन क्षमता: दूध एक आवश्यक वस्तु है, इसलिए इसकी कीमत उपभोक्ताओं के लिए वहनीय होनी चाहिए, खासकर कम आय वाले समूहों के लिए।
बाजार की मांग और आपूर्ति: यदि मांग अधिक है और आपूर्ति कम है, तो कीमतें बढ़ सकती हैं, और इसके विपरीत भी हो सकता है।
सरकारी नीतियां: सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) और अन्य नीतियां दूध की कीमतों को प्रभावित कर सकती हैं।
गुणवत्ता: उच्च गुणवत्ता वाले दूध की कीमत सामान्य दूध से अधिक हो सकती है।
विशेषज्ञों का मानना है कि दूध की कीमत इस तरह से निर्धारित की जानी चाहिए जिससे किसानों को उनकी लागत का उचित प्रतिफल मिले और उपभोक्ताओं पर भी अधिक बोझ न पड़े। उत्पादन लागत को कम करने और दक्षता बढ़ाने के उपायों से भी उचित मूल्य निर्धारण में मदद मिल सकती है।
देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पशुपालन का योगदान महत्वपूर्ण है। विभिन्न स्रोतों के अनुसार, यह योगदान इस प्रकार है:
कुल जीडीपी में: पशुधन क्षेत्र का योगदान लगभग 4.11% से 5.73% के बीच है। नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2021-22 में यह 5.73% था।
कृषि जीडीपी में: कृषि और संबद्ध क्षेत्र के सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) में पशुधन का योगदान और भी अधिक है, जो लगभग 25.6% से 30.19% तक है। 2021-22 में यह 30.19% था और 2022-23 में बढ़कर 30.38% हो गया।
यह क्षेत्र न केवल जीडीपी में योगदान देता है, बल्कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लाखों लोगों को आजीविका प्रदान करता है, विशेषकर छोटे और सीमांत किसानों और भूमिहीन मजदूरों को। इसके अतिरिक्त, यह पोषण सुरक्षा में योगदान देता है और डेयरी उद्योग भारत में सबसे बड़ी एकल कृषि वस्तु है, जो राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में लगभग 5% का योगदान करती है और 80 मिलियन से अधिक किसानों को प्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करती है।
लगभग 20.5 मिलियन लोग अपनी आजीविका के लिए पशुधन पर निर्भर हैं, और यह ग्रामीण समुदाय के दो-तिहाई लोगों को आजीविका प्रदान करता है।
इसलिए, जबकि पशुपालकों की आय का सटीक प्रतिशत राष्ट्रीय आय में लगभग 5-6% के आसपास हो सकता है, यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था और कृषि क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह लाखों लोगों को रोजगार और आय प्रदान करता है और खाद्य सुरक्षा में भी योगदान देता है।
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