अनुच्छेद 341 अनुसूचित जातियों की पहचान और उनके अधिकारों की रक्षा करता है।

    



भारतीय संविधान का अनुच्छेद 341: अनुसूचित जातियों का निर्धारण और उत्थान

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 341 "अनुसूचित जातियाँ" शब्द को परिभाषित करने और उन्हें संवैधानिक पहचान प्रदान करने से संबंधित है। यह अनुच्छेद भारतीय समाज के उन वर्गों के उत्थान और सशक्तिकरण के लिए एक महत्वपूर्ण आधारशिला है, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से अस्पृश्यता और गंभीर सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा है।

अनुच्छेद 341 क्या कहता है?

अनुच्छेद 341 के दो मुख्य खंड हैं:

अनुच्छेद 341(1): यह राष्ट्रपति को शक्ति देता है कि वह किसी भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में, उस राज्य के राज्यपाल से परामर्श करने के बाद, सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उन जातियों, मूलवंशों या जनजातियों या उनके समूहों या उनके भीतर के वर्गों को विनिर्दिष्ट कर सकता है, जिन्हें इस संविधान के प्रयोजनों के लिए उस राज्य या केंद्र शासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जाति माना जाएगा।

अनुच्छेद 341(2): यह खंड संसद को अधिकार देता है कि वह कानून द्वारा, अनुच्छेद 341(1) के तहत जारी किसी भी अधिसूचना में निर्दिष्ट अनुसूचित जातियों की सूची में किसी भी जाति, मूलवंश, जनजाति या उनके समूह या उनके भीतर के वर्ग को शामिल कर सकती है या हटा सकती है। हालाँकि, एक बार राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचना जारी करने के बाद, उसे किसी अन्य अधिसूचना द्वारा बदला नहीं जा सकता है, केवल संसद ही कानून बनाकर इसमें बदलाव कर सकती है।

मुख्य बातें और चर्चा:

राष्ट्रपति की शक्ति: अनुच्छेद 341 के तहत अनुसूचित जातियों की सूची को अधिसूचित करने की प्रारंभिक शक्ति राष्ट्रपति के पास है। यह सुनिश्चित करता है कि यह प्रक्रिया राजनीतिक प्रभावों से यथासंभव मुक्त रहे और एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य से निर्णय लिया जाए।

संसद की सर्वोच्चता: सूची में किसी भी संशोधन, जोड़ या हटाने का अधिकार केवल संसद के पास है। राज्य सरकारों को अनुसूचित जातियों की सूची में संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं है, जैसा कि सर्वोच्च न्यायालय ने कई निर्णयों में स्पष्ट किया है। यह सुनिश्चित करता है कि अनुसूचित जातियों की पहचान और वर्गीकरण में एकरूपता बनी रहे और राज्यों द्वारा मनमाने ढंग से बदलाव न किए जा सकें।

"सजातीय समूह" का सिद्धांत: सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी टिप्पणी की है कि अनुच्छेद 341 के तहत अधिसूचित अनुसूचित जातियां एक "सजातीय समूह" बनाती हैं, जिन्हें आगे उप-वर्गीकृत नहीं किया जा सकता है। हालांकि, इस सिद्धांत पर विभिन्न मामलों में विचार-विमर्श होता रहा है, खासकर जब आरक्षण के लाभों के अधिक न्यायसंगत वितरण की बात आती है। कुछ राज्य अनुसूचित जातियों के भीतर उप-वर्गीकरण के पक्ष में तर्क देते हैं ताकि उन उप-जातियों को भी लाभ मिल सके जो अभी भी वंचित हैं।

सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन: अनुसूचित जाति सूची में शामिल किए जाने के लिए मुख्य मानदंड परंपरागत अस्पृश्यता की प्रथा से उत्पन्न अत्यधिक सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक पिछड़ापन रहा है। यह सुनिश्चित करता है कि केवल उन समुदायों को ही इस श्रेणी में शामिल किया जाए, जिन्हें वास्तव में ऐतिहासिक अन्याय और भेदभाव का सामना करना पड़ा है।

राजनीतिक कारकों का उन्मूलन: अनुच्छेद 341 का उद्देश्य अनुसूचित जातियों को केवल संवैधानिक पहचान प्रदान करना है और राष्ट्रपति द्वारा प्रकाशित सूची में राजनीतिक कारकों को समाप्त करना है।

अनुसूचित जाति का उत्थान और वर्तमान प्रतिशत:

भारत में अनुसूचित जातियों के उत्थान के लिए संविधान में कई प्रावधान किए गए हैं, जिनमें आरक्षण (शिक्षा, सरकारी नौकरियों और विधायी निकायों में), विशेष योजनाएं और कानून (जैसे अत्याचार निवारण अधिनियम) शामिल हैं। इन उपायों का उद्देश्य सामाजिक न्याय और समानता स्थापित करना है।

उत्थान का स्तर:

अनुसूचित जातियों के उत्थान में निश्चित रूप से प्रगति हुई है। शिक्षा, स्वास्थ्य, और आर्थिक अवसरों तक उनकी पहुंच में वृद्धि हुई है। कई अनुसूचित जाति के व्यक्तियों ने महत्वपूर्ण पदों और भूमिकाओं में सफलता प्राप्त की है, जिससे समाज में उनकी दृश्यता और भागीदारी बढ़ी है। हालांकि, अभी भी चुनौतियां मौजूद हैं, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, जहाँ सामाजिक भेदभाव और आर्थिक असमानता अभी भी बनी हुई है।

वर्तमान प्रतिशत:

भारत की 2011 की जनगणना के अनुसार, अनुसूचित जातियों की जनसंख्या भारत की कुल जनसंख्या का 16.6 प्रतिशत थी। यह लगभग 20.13 करोड़ व्यक्तियों की संख्या को दर्शाता है। यह आंकड़ा अनुसूचित जातियों की एक बड़ी आबादी को दर्शाता है, जिसके कारण उनके उत्थान और सशक्तिकरण के प्रयास और भी महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

अनुच्छेद 341 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो अनुसूचित जातियों की पहचान और उनके अधिकारों की रक्षा करता है। यह अनुच्छेद यह सुनिश्चित करता है कि ऐतिहासिक रूप से वंचित इन समुदायों को समाज की मुख्यधारा में लाया जा सके और उन्हें सामाजिक न्याय मिल सके। हालांकि, उत्थान की प्रक्रिया जारी है और सरकार तथा समाज दोनों को इस दिशा में लगातार प्रयास करते रहने की आवश्यकता है।



 

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