ब्रिटिश उपनिवेशवाद की तरह थी जनविरोधी "लैटरल एंट्री" !

    


मोदी सरकार को   कई  जनविरोधी कार्यों को  विपक्ष व जनता के दबाव में वापस लेना पड़ा है।  चाहे वो कृषि बिल हो या "लैटरल एंट्री" !अगस्त 2024 में, 45 मध्य-स्तरीय नौकरशाहों की लेटरल एंट्री के माध्यम से भर्ती की योजना को राजनीतिक विरोध के कारण स्थगित कर दिया गया था।

यह सच है कि ब्रिटिश शासन के दौरान, अंग्रेजों को भारतीय कर्मचारियों की तुलना में अक्सर अधिक वेतन और भत्ते मिलते थे। यह ब्रिटिश उपनिवेशवाद की एक विशेषता थी, जहाँ ब्रिटिश अधिकारियों को उच्च पदों पर रखा जाता था और उन्हें बेहतर सुविधाएं दी जाती थीं, जबकि भारतीयों को अक्सर कम वेतन और अधीनस्थ भूमिकाओं में रखा जाता था। इसका एक कारण यह भी था कि ब्रिटिश प्रशासन भारतीयों को कम वेतन पर काम करने के लिए तैयार करना चाहता था ताकि प्रशासन पर होने वाले खर्च को कम किया जा सके और अपने प्रति वफादार भारतीयों का एक वर्ग तैयार किया जा सके।

"लैटरल एंट्री"  ब्रिटिश काल की असमानताओं की तरह  हैं। लैटरल एंट्री का अर्थ है सरकारी सेवाओं में उन पदों पर सीधे तौर पर विशेषज्ञता वाले व्यक्तियों को नियुक्त करना, जो आमतौर पर पारंपरिक सिविल सेवा परीक्षा  के माध्यम से भरे जाते हैं।

लैटरल एंट्री को ब्रिटिश काल की असमानताओं से जोड़कर देखा जा सकता  हैं या उसमें कुछ समानताएं पाते हैं क्योंकि:

लैटरल एंट्री के तहत कई पदों पर आरक्षण एससी एसटी, ओबीसी  लागू नहीं होता है, जिससे हाशिए पर पड़े समुदायों के प्रतिनिधित्व पर सवाल उठते हैं।  यह सामाजिक न्याय के सिद्धांतों को कमजोर करता है, जैसा कि ब्रिटिश काल में भारतीयों के साथ भेदभाव होता था।

 लैटरल एंट्री प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी हो सकती है, जिससे भाई-भतीजावाद या राजनीतिक विचारों के आधार पर नियुक्तियों की आशंका रहती है, बजाय योग्यता के। ब्रिटिश काल में भी ब्रिटिश अधिकारियों की नियुक्ति में उनके हितों को प्राथमिकता दी जाती थी।

मौजूदा सिविल सेवकों को यह लग सकता है कि लैटरल एंट्री से उनका मनोबल कम हो सकता है, खासकर यदि बाहरी लोगों को उनसे उच्च पदों पर नियुक्त किया जाता है।

यह नौकरशाही के भीतर एक दोहरी प्रणाली बना सकता है, जिससे मौजूदा और लैटरल एंट्री वाले अधिकारियों के बीच असमानता और असंतोष पैदा हो सकता है।

ब्रिटिश काल में अंग्रेजों को भारतीयों से अधिक भत्ता मिलना स्पष्ट रूप से औपनिवेशिक भेदभाव का परिणाम था, लैटरल एंट्री  आधुनिक शासन में अतीत की असमानताओं से मिलते हैं।


 

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