भारत चुनौती के बीच अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था !-प्रो प्रसिद्ध कुमार,अर्थशास्त्र विभाग।

 


 भारत की अर्थव्यवस्था लगभग $4 ट्रिलियन (4 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर) की है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के आंकड़ों के अनुसार, भारत अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, जिसने जापान को पीछे छोड़ दिया है।

भारत से आगे जो देश हैं और उनकी अर्थव्यवस्था का अनुमानित आकार (2025 के लिए IMF के अनुमान के अनुसार) इस प्रकार है:

संयुक्त राज्य अमेरिका (USA): लगभग $30.507 ट्रिलियन

चीन: लगभग $19.231 ट्रिलियन

जर्मनी: लगभग $4.92 ट्रिलियन

नीति आयोग के सीईओ के अनुसार, अगर भारत वर्तमान विकास दर पर कायम रहता है, तो अगले 2.5 से 3 वर्षों में जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है।

भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन इसके बावजूद प्रति व्यक्ति आय, रोजगार, स्वास्थ्य, कुपोषण और शिक्षा जैसे सामाजिक-आर्थिक संकेतकों में पिछड़ा होना एक जटिल समस्या है जिसके कई कारण हैं:

1. विशाल जनसंख्या और प्रति व्यक्ति आय पर प्रभाव:

भारत की विशाल जनसंख्या (दुनिया में सबसे अधिक) सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को बड़ा बनाती है, लेकिन जब इस GDP को इतनी बड़ी आबादी में बांटा जाता है, तो प्रति व्यक्ति आय स्वाभाविक रूप से कम हो जाती है।

जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास की गति को कम कर देती है, क्योंकि संसाधनों और अवसरों का वितरण अधिक लोगों में करना पड़ता है।

जनसंख्या का बड़ा हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में निवास करता है, जहां आय के अवसर सीमित हैं और अक्सर अनौपचारिक क्षेत्र में काम करना पड़ता है, जिससे प्रति व्यक्ति आय कम रहती है।

2. असमानता:

भारत में आय और धन की असमानता बहुत अधिक है। राष्ट्रीय आय का एक बड़ा हिस्सा शीर्ष 1% आबादी के पास है, जबकि बड़ी संख्या में लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं या निम्न आय वर्ग में आते हैं।

यह असमानता स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच को प्रभावित करती है, जिससे कमजोर वर्गों के लिए विकास के अवसर कम हो जाते हैं।

3. रोजगार की कमी और गुणवत्ता:

अपर्याप्त नौकरी के अवसर: भारत में बढ़ती आबादी के अनुपात में पर्याप्त औपचारिक रोजगार के अवसर पैदा नहीं हो पा रहे हैं।

कौशल विकास की कमी: शिक्षा और कौशल विकास की कमी के कारण बड़ी संख्या में युवा श्रम बाजार की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं हैं, जिससे उन्हें अच्छी नौकरियां नहीं मिल पातीं।

असंगठित क्षेत्र का प्रभुत्व: भारत में रोजगार का एक बड़ा हिस्सा असंगठित क्षेत्र में है, जहाँ रोजगार सुरक्षा, सामाजिक सुरक्षा लाभ और स्थिर आय का अभाव होता है।

धीमी आर्थिक वृद्धि और कुछ क्षेत्रों में अपर्याप्त निवेश: औद्योगिक और सेवा क्षेत्र में अपेक्षित वृद्धि न होने से भी रोजगार सृजन में बाधा आती है।

4. स्वास्थ्य सेवाओं में पिछड़ापन:

सीमित स्वास्थ्य सेवा अवसंरचना: विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं और प्रशिक्षित पेशेवरों की कमी है।

आर्थिक असमानताएं: गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच आय असमानता से प्रभावित होती है, जिससे गरीब और वंचित लोग अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित रह जाते हैं।

खराब स्वच्छता और साफ-सफाई: स्वच्छ पानी और स्वच्छता सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुंच जल-जनित रोगों के प्रसार में योगदान करती है।

प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा की उपेक्षा: प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में अपर्याप्त निवेश के कारण मातृ और शिशु मृत्यु दर अधिक है, और संक्रामक रोग व्यापक रूप से फैले हुए हैं।

5. कुपोषण:


भोजन की कमी और कम आय: कम आय वाले लोगों में पर्याप्त और पौष्टिक भोजन की कमी कुपोषण का एक प्रमुख कारण है।


जागरूकता का अभाव: संतुलित आहार के बारे में जानकारी और जागरूकता की कमी भी कुपोषण को बढ़ाती है।


स्वच्छता की कमी: दूषित पानी और खराब स्वच्छता से संक्रमण फैलते हैं, जो पोषक तत्वों के अवशोषण को बाधित करते हैं और कुपोषण को बढ़ाते हैं।


सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कमियां: कुछ क्षेत्रों में सार्वजनिक वितरण प्रणाली की अक्षमता के कारण भी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो पाती है।

6. शिक्षा में पिछड़ापन:

गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी: सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता अक्सर निजी स्कूलों से कम होती है, जिससे गरीब छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा नहीं मिल पाती।

पारिवारिक गरीबी: गरीब परिवारों के बच्चे अक्सर पढ़ाई बीच में छोड़ देते हैं या उन्हें अध्ययन के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल पातीं।

बुनियादी ढांचे का अभाव: कई स्कूलों में उचित भवन, पुस्तकालय, प्रयोगशाला और अन्य सुविधाओं की कमी होती है।

अयोग्य और अप्रशिक्षित शिक्षक: शिक्षकों की कमी या अयोग्य शिक्षक भी शिक्षा की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं।

सामाजिक-सांस्कृतिक कारक: कुछ क्षेत्रों में, विशेषकर ग्रामीण और वंचित समुदायों में, बालिकाओं की शिक्षा को कम महत्व दिया जाता है।

दोषपूर्ण पाठ्यक्रम: पाठ्यक्रम का व्यावहारिक न होना और रोजगारपरक कौशल से जुड़ा न होना भी शिक्षा के पिछड़ेपन का एक कारण है।

भारत की विशाल अर्थव्यवस्था का आकार मुख्य रूप से इसकी बड़ी जनसंख्या के कारण है, लेकिन यह अर्थव्यवस्था का धन समान रूप से वितरित नहीं है। प्रति व्यक्ति आय कम है क्योंकि धन कुछ ही हाथों में केंद्रित है, और सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए आवश्यक मानव पूंजी और बुनियादी ढांचे में निवेश अभी भी पर्याप्त नहीं है। इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए लक्षित नीतियों, बेहतर शासन और समावेशी विकास की आवश्यकता है।


 

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