सिंदूर और सातों वचन ( कविता ) -प्रो प्रसिद्ध कुमार।
चुटकी भर सिंदूर, मस्तक पर जब सजता है,
यह केवल एक रंग नहीं, सात जन्मों का बंधन है।
हर वचन जो दिया था, अग्नि को साक्षी मानकर,
उन सभी वचनों को, हृदय में सदा रखना संभालकर।
तेरे नाम का मंगलसूत्र, मेरे गले का हार है,
यह केवल धागा नहीं, सुहाग का श्रृंगार है।
सदा जीवन में मंगल हो, यही मेरी अरदास है,
खुशियों से भरा रहे आँगन, यही मेरी आस है।
सिंदूरी शाम की कल्पना
अगर सिंदूरी शाम में, हम दोनों होते साथ-साथ,
हाथों में हाथ डाले, करते जीवन की हर बात।
आज गोद में होते मुन्ना-मुनिया, खिलखिलाते पास,
उनकी किलकारियों से गूँजता, हमारा प्यारा आवास।
हर स्वप्न होता साकार, हर इच्छा होती पूरी,
प्रेम के धागों से बँधकर, रचते अपनी कहानी अधूरी।
यह सिंदूर की लाली, इस रिश्ते की पहचान है,
तेरे साथ ही मेरा हर पल, हर जीवन महान है।
-प्रो प्रसिद्ध कुमार ।आप अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें।
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