अद्भुत है भारत के "ढांचा" या "निर्माण" ! प्रो प्रसिद्ध कुमार।
गया के छात्र पंकज कुमार के जिज्ञासा पर यह मेरा सरल भाषा में आलेख है।
भारत को एक लोकतांत्रिक, न्यायपूर्ण, स्वतंत्र और समानता पर आधारित देश बनाने की हमारी साझा आकांक्षाओं को दर्शाते हैं।
भारत के "ढांचा" या "निर्माण" से मतलब भारतीय संविधान से है। यह संविधान ही वह आधारशिला है जिस पर भारत देश खड़ा है। इस संविधान के निर्माण में कई महत्वपूर्ण शब्दों और अवधारणाओं का उपयोग किया गया है, जो भारत के स्वरूप को परिभाषित करते हैं।
संविधान की प्रस्तावना (Preamble)
संविधान की शुरुआत एक प्रस्तावना से होती है, जो पूरे संविधान का सार है। इसमें कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण शब्द हैं, जिनसे भारत के निर्माण का पता चलता है:
"हम, भारत के लोग" (We, the People of India): यह शब्द दर्शाता है कि भारत की शक्ति और सत्ता लोगों में निहित है। यानी, यह देश किसी राजा या शासक का नहीं, बल्कि यहाँ के हर नागरिक का है।
"भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए": ये शब्द भारत के मूल स्वरूप को बताते हैं:
संपूर्ण प्रभुत्व-संपन्न (Sovereign): इसका मतलब है कि भारत अपने अंदरूनी और बाहरी मामलों में पूरी तरह से स्वतंत्र है। कोई बाहरी देश या शक्ति भारत पर हुक्म नहीं चला सकती।
समाजवादी (Socialist): यह शब्द बताता है कि भारत में सामाजिक और आर्थिक समानता लाने का लक्ष्य है। इसका मतलब है कि सरकार अमीरी-गरीबी के अंतर को कम करने और सभी को समान अवसर प्रदान करने के लिए काम करेगी।
पंथनिरपेक्ष (Secular): इसका अर्थ है कि भारत का कोई सरकारी धर्म नहीं है। सभी धर्मों को समान सम्मान दिया जाता है और सरकार किसी भी धर्म के साथ भेदभाव नहीं करती। हर व्यक्ति को अपनी पसंद का धर्म मानने की आजादी है।
लोकतंत्रात्मक (Democratic): इसका मतलब है कि भारत में जनता का शासन है। लोग अपने प्रतिनिधियों को चुनते हैं जो सरकार चलाते हैं। यह प्रतिनिधियों द्वारा शासित होता है।
गणराज्य (Republic): इसका मतलब है कि भारत का राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति) वंशानुगत नहीं होता, बल्कि लोगों द्वारा चुना जाता है।
"समस्त नागरिकों को: न्याय, स्वतंत्रता, समता, बंधुता प्राप्त कराने के लिए": ये शब्द भारत के नागरिकों के लिए संविधान के लक्ष्यों को बताते हैं:
न्याय (Justice): सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय मिले। इसका मतलब है कि किसी के साथ जाति, धर्म, लिंग या आर्थिक स्थिति के आधार पर अन्याय न हो।
स्वतंत्रता (Liberty): नागरिकों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता मिले। यानी, हर व्यक्ति को अपनी बात कहने, अपनी पसंद का धर्म मानने और अपनी मर्जी से जीने की आजादी है, बशर्ते वह दूसरों को नुकसान न पहुँचाए।
समता (Equality): सभी नागरिकों को प्रतिष्ठा और अवसर की समानता मिले। इसका मतलब है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं और सभी को आगे बढ़ने के समान अवसर मिलने चाहिए।
बंधुता (Fraternity): सभी नागरिकों के बीच भाईचारा और एकजुटता की भावना हो। यह देश की एकता और अखंडता के लिए जरूरी है।
संविधान के अन्य महत्वपूर्ण शब्द और अवधारणाएँ
प्रस्तावना के अलावा, संविधान में और भी कई शब्द हैं जो भारत के ढाँचे को आकार देते हैं:
मूल अधिकार (Fundamental Rights): ये वे अधिकार हैं जो हर नागरिक को प्राप्त हैं और सरकार भी इन्हें छीन नहीं सकती। जैसे: समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार, आदि।
राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy): ये सरकार के लिए कुछ दिशा-निर्देश हैं कि उसे कैसा शासन चलाना चाहिए ताकि देश में सामाजिक और आर्थिक न्याय स्थापित हो सके। ये मूल अधिकारों की तरह कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं हैं, लेकिन सरकार को इन्हें ध्यान में रखना होता है।
संघवाद (Federalism): इसका मतलब है कि भारत में केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का बँटवारा है। दोनों अपने-अपने क्षेत्रों में स्वतंत्र रूप से काम करती हैं।
संसदीय प्रणाली (Parliamentary System): भारत में सरकार संसद के प्रति जवाबदेह होती है। प्रधानमंत्री और मंत्री संसद के सदस्य होते हैं और उन्हें बहुमत का समर्थन प्राप्त होना चाहिए।
स्वतंत्र न्यायपालिका (Independent Judiciary): भारत में न्यायपालिका (अदालतें) स्वतंत्र हैं और वे सरकार के दबाव के बिना काम करती हैं। यह नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती है और संविधान की व्याख्या करती है।
भारत का निर्माण इन सभी शब्दों और अवधारणाओं के मेल से हुआ है जो भारतीय संविधान में निहित हैं।
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