लालू यादव दलितों, वंचितों व हाशिये के लोगों की आवाज़।
तेजस्वी यादव इसी राह पर चल पड़े हैं और 2025 के बिहार विधानसभा चुनाव में बिहार का नेतृत्व करना तय है।यह बात जनता की मूड व भाजपा जदयू की लूट खसोट राज से लोग निजात पाने का मिजाज बना लिया है।
लालू जी एक साधारण परिवार से उठकर बिहार के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों तक पहुँचे।
लालू प्रसाद यादव को भारत में, खासकर बिहार में, हाशिये पर पड़े लोगों, दलितों और वंचितों की आवाज़ उठाने वाले नेता के तौर पर व्यापक रूप से जाना जाता है। उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन में इन समुदायों के उत्थान और सामाजिक न्याय के लिए लगातार प्रयास किए हैं।
उनकी नीतियों और कार्यों के कुछ प्रमुख पहलू जो इस बात का समर्थन करते हैं:
सामाजिक न्याय का नारा: लालू यादव ने सामाजिक न्याय को अपनी राजनीति का केंद्र बिंदु बनाया। उन्होंने पिछड़े, अतिपिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों को राजनीतिक रूप से सशक्त करने पर जोर दिया।
जातिगत जनगणना की वकालत: उन्होंने लंबे समय से जातिगत जनगणना की मांग उठाई है, जिसका उद्देश्य इन समुदायों की सही संख्या और स्थिति का पता लगाकर उनके लिए बेहतर नीतियां बनाना है। उनका मानना है कि इससे वंचितों को उनका हक मिल पाएगा।
दलित बस्तियों का दौरा: मुख्यमंत्री रहते हुए वे अक्सर दलित बस्तियों में जाते थे, लोगों से सीधे मिलते थे, उनकी समस्याओं को सुनते थे और उनके लिए समाधान निकालने का प्रयास करते थे। उन्होंने दलितों को मान-सम्मान दिलाया और उन्हें समाज में बराबरी का दर्जा दिलाने के लिए काम किया।
आरक्षण का समर्थन: उन्होंने दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का पुरजोर समर्थन किया और यह सुनिश्चित करने की कोशिश की कि उन्हें शिक्षा और सरकारी नौकरियों में उचित प्रतिनिधित्व मिले।
सांप्रदायिक सद्भाव: लालू यादव ने 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन के दौरान बिहार में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने और मुस्लिम समुदाय को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसे उनकी सामाजिक न्याय की राजनीति का एक अहम हिस्सा माना जाता है।
लालू प्रसाद यादव के मुख्यमंत्रित्व काल को "वंचितों का स्वर्णकाल" कहना एक बहस का विषय रहा है, जिस पर अलग-अलग राय देखने को मिलती हैं। इसे सामाजिक न्याय और वंचितों के सशक्तिकरण का दौर मानते हैं।
यहां कुछ तथ्य दिए गए हैं जो उनके शासनकाल को वंचितों के उत्थान के संदर्भ में समझने में मदद करते हैं:
सकारात्मक पक्ष (वंचितों के उत्थान के दावे):
पिछड़ों और दलितों को मिली आवाज़: लालू यादव ने बिहार की राजनीति में पिछड़ी और दलित जातियों को एक मज़बूत राजनीतिक पहचान और आवाज़ दी। इससे पहले तक सत्ता में उच्च जातियों का वर्चस्व रहा था। उनके शासन में इन वर्गों के लोगों को सरकारी नौकरियों और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में हिस्सेदारी मिली, जिससे उन्हें लगा कि उनकी बात सुनी जा रही है।
सामाजिक न्याय का प्रतीक: लालू यादव को सामाजिक न्याय का एक बड़ा प्रतीक माना जाता है। उन्होंने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को आरक्षण का लाभ मिला। यह कदम वंचित समुदायों के लिए शिक्षा और रोजगार के अवसर खोलने में सहायक साबित हुआ।
जातिगत अस्मिता का उभार: उन्होंने जातिगत अस्मिता को एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभारा। यह उन लोगों के लिए महत्वपूर्ण था जो लंबे समय से सामाजिक और आर्थिक रूप से हाशिए पर थे। उन्हें "सामाजिक न्याय के मसीहा" के रूप में देखा गया।
चरवाहा विद्यालय: उन्होंने "चरवाहा विद्यालय" जैसी कुछ योजनाएं शुरू कीं, जिसका उद्देश्य ग्रामीण और वंचित बच्चों को शिक्षा से जोड़ना था, हालांकि इसकी प्रभावशीलता पर सवाल भी उठे।
निर्वाचन प्रक्रिया में भागीदारी: टी.एन. शेषन के चुनाव सुधारों के साथ मिलकर लालू यादव के शासनकाल में दलितों और पिछड़ों को पोलिंग बूथ तक पहुंचने और अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अधिक अवसर मिला, जो पहले बूथ कैप्चरिंग और दबंगई के कारण संभव नहीं हो पाता था। इससे वंचितों की राजनीतिक भागीदारी बढ़ी।
यह निर्विवाद है कि उन्होंने बिहार की राजनीति में सामाजिक न्याय के एजेंडे को मज़बूती से स्थापित किया और पिछड़ी तथा दलित जातियों को राजनीतिक और सामाजिक रूप से सशक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके शासनकाल में इन वर्गों को अपनी पहचान और अधिकारों के प्रति अधिक जागरूक होने का अवसर मिला।
लालू प्रसाद यादव 2004 से 2009 तक भारत के रेल मंत्री रहे। उनके कार्यकाल को भारतीय रेलवे के लिए कई महत्वपूर्ण बदलावों और सुधारों के लिए याद किया जाता है। उनके योगदानों को निम्नलिखित बिंदुओं में समझा जा सकता है:
भारतीय रेलवे की आर्थिक स्थिति में सुधार: लालू यादव ने रेलवे को घाटे से उबारकर मुनाफे में लाने का दावा किया। उन्होंने विभिन्न उपायों के माध्यम से रेलवे की वित्तीय स्थिति में सुधार पर ध्यान केंद्रित किया। हालांकि, इस मुनाफे की प्रकृति को लेकर कुछ विवाद भी रहा है, कुछ रिपोर्टों ने इसे "अधिशेष" बताया, न कि शुद्ध लाभ, और कुछ ने खातों में हेरफेर का आरोप लगाया। फिर भी, उनके कार्यकाल में रेलवे की आय में वृद्धि हुई।
माल ढुलाई में सुधार: उन्होंने वैगनों के ओवरलोडिंग को वैध करके रेलवे की आय क्षमता में सुधार किया, जिससे माल ढुलाई से होने वाली आय में वृद्धि हुई।
गरीब रथ ट्रेनें: उन्होंने 'गरीब रथ' नामक नई एसी ट्रेनों की शुरुआत की, जिनका उद्देश्य कम किराए में वातानुकूलित यात्रा की सुविधा प्रदान करना था, जिससे आम लोगों को भी आरामदायक यात्रा का अनुभव मिल सके।
आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण: उनके कार्यकाल में रेलवे के आधुनिकीकरण और डिजिटलीकरण की दिशा में भी कदम उठाए गए।
रेलवे स्टेशनों का निजीकरण: रेलवे स्टेशनों के निजीकरण की कल्पना भी उनके कार्यकाल में की गई थी, हालांकि यह पूरी तरह से लागू नहीं हो सका।
नई रेल लाइनों का निर्माण: उन्होंने नई रेल लाइनों के निर्माण पर भी ध्यान दिया। उदाहरण के लिए, छितौनी-तमकुही रेल परियोजना, जिसकी आधारशिला उन्होंने 2007 में रखी थी, अब पूरी होने के करीब है, जिससे यूपी और बिहार के कई गांवों को लाभ मिलेगा।
रेल व्हील प्लांट: सारण के दरियापुर में रेल व्हील प्लांट की आधारशिला उनके कार्यकाल में (2008 में) रखी गई थी, जिसने बाद में 2 लाख से अधिक रेल पहियों का उत्पादन किया, जिससे भारतीय रेलवे को आत्मनिर्भरता में मदद मिली।
लालू यादव के कार्यकाल को अक्सर "चमत्कारिक" बताया जाता है।
Comments
Post a Comment