राजनीतिक दल दलबदलुओं ,नॉकरशाहों ,धनवानों को टिकट न देकर जमीनी कार्यकर्ताओं को दे।
किसी भी राजनीतिक दल में वास्तविक ताकत उनके जमीनी कार्यकर्ताओं में ही निहित है न की दलबदलुओं में।
आजीवन राजनीति करने वाले दल के झंडा, डंडा ढोने वाले ताकते रह जाते हैं और दलबदलू एक ही झटके में आकर टिकट झटक लेते हैं जो अनुचित है।यही हाल धनवान ,नॉकरशाह भी करते हैं।येन केन प्रकरेण धन कमा लेते हैं और राजनीति में कूद जाते हैं।क्या ऐसे लोगों से राजनीति का स्वरूप नहीं बिगड़ रहा है? आखिर दल के जिंदगी खपाने वाले क्या करेंगे ? कहाँ जाएंगे ? ऐसा नहीं है कि यही लोग सिर्फ क़ाबिल हैं! हकीकत यह है कि जमीनी कार्यकर्ता राजनीति के ग्रास रूट पर होते हैं, उन्हें राजनीति की समझ ज्यादा होती है।
जब दलबदलू नेताओं को टिकट मिल जाता है और पार्टी के वफादार और मेहनती कार्यकर्ता जो सालों से ज़मीन पर काम कर रहे होते हैं, उन्हें अनदेखा कर दिया जाता है, तो इससे कई समस्याएँ पैदा होती हैं:
यह पार्टी के प्रति कार्यकर्ताओं के समर्पण को कम करता है। जब उन्हें लगता है कि उनकी निष्ठा और मेहनत का कोई मोल नहीं है, तो वे हतोत्साहित हो जाते हैं।
यह परंपरा दलबदलुओं को और अधिक अवसरवादी बनने के लिए प्रोत्साहित करती है। वे देखते हैं कि बिना किसी वैचारिक प्रतिबद्धता के, केवल जीतने की संभावना के आधार पर उन्हें टिकट मिल सकता है।
कई बार टिकट वितरण में पारदर्शिता की कमी होती है, और यह आरोप लगते हैं कि पैसे या राजनीतिक रसूख के बल पर दलबदलुओं को तरजीह दी जाती है, जिससे भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिलता है।
जो नेता बार-बार दल बदलते हैं, उनकी अपनी कोई ठोस विचारधारा नहीं होती। ऐसे लोगों को टिकट देने से पार्टी की अपनी विचारधारा और सिद्धांतों पर असर पड़ता है और उसकी पहचान धूमिल होती है।
जनता ऐसे नेताओं को पसंद नहीं करती जो केवल सत्ता के लिए दल बदलते हैं। जब ऐसी परंपराएँ हावी होती हैं, तो राजनीतिक दलों और पूरी राजनीतिक प्रक्रिया से जनता का विश्वास कम होता है।
इस गलत परंपरा को रोकने के लिए राजनीतिक दलों को टिकट वितरण प्रणाली में अधिक पारदर्शिता लानी होगी। निष्ठावान कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता देनी होगी और एक स्पष्ट मापदंड तय करना होगा। साथ ही, दलबदलुओं के लिए कड़े नियम बनाए जाने चाहिए ताकि वे आसानी से टिकट न पा सकें।
यह एक गंभीर मुद्दा है जो भारतीय लोकतंत्र की जड़ों को कमजोर करता है। इस पर गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
भारतीय राजनीति में यह प्रवृत्ति देखी जा रही है कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों में धनवान और नौकरशाहों की संख्या बढ़ रही है। ऐसे में जमीनी राजनीतिक कार्यकर्ताओं के भविष्य और भूमिका पर सवाल उठना स्वाभाविक है।
धन बल का प्रभाव: चुनाव में धन का उपयोग काफी बढ़ गया है, चाहे वह प्रचार के लिए हो, रैलियों के लिए हो या अन्य खर्चों के लिए। धनवान उम्मीदवार इस मामले में एक स्पष्ट बढ़त रखते हैं, जिससे जमीनी कार्यकर्ताओं के लिए मुकाबला करना मुश्किल हो जाता है।
नौकरशाहों और स्थापित धनवानों के पास पहले से ही एक बड़ा नेटवर्क और पहुंच होती है, जिससे उन्हें जनता तक पहुंचने और समर्थन जुटाने में आसानी होती है।
अक्सर मीडिया का ध्यान धनवान और स्थापित चेहरों पर ज्यादा होता है, जिससे जमीनी कार्यकर्ताओं को अपनी बात रखने के लिए पर्याप्त मंच नहीं मिल पाता।
राजनीतिक दल भी अक्सर "जीतने योग्य" उम्मीदवार की तलाश में रहते हैं, और इसमें धनवान या प्रभावशाली पृष्ठभूमि वाले उम्मीदवारों को प्राथमिकता दी जा सकती है।
इसके बावजूद, जमीनी राजनीतिक कार्यकर्ताओं का महत्व भारतीय राजनीति में कम नहीं हुआ है, बल्कि वे लोकतंत्र की नींव हैं। राजनीतिक दलों के लिए जमीनी कार्यकर्ता ही वे लोग होते हैं जो सबसे निचले स्तर पर काम करते हैं। वे बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करते हैं, लोगों से सीधा संपर्क बनाते हैं, सरकारी नीतियों को जनता तक पहुंचाते हैं और जनता की समस्याओं को पार्टी नेतृत्व तक लाते हैं। उनके बिना कोई भी पार्टी चुनाव नहीं जीत सकती।
जमीनी कार्यकर्ता ही जनता के बीच रहते हैं, उनकी समस्याओं को समझते हैं और उनके लिए काम करते हैं। वे जनता का विश्वास जीतते हैं, जो चुनाव में महत्वपूर्ण होता है।
भले ही चुनाव में धन बल हावी हो, लेकिन विचारधारा का प्रसार और लोगों को पार्टी की नीतियों से जोड़ना जमीनी कार्यकर्ताओं का ही काम है।
राजनीति एक मैराथन है, स्प्रिंट नहीं। जमीनी कार्यकर्ता वर्षों तक जनता के बीच काम करते हैं, जिससे एक मजबूत आधार बनता है। यह आधार कई बार धन बल पर भारी पड़ सकता है, जैसा कि कई बार देखा गया है कि कम धनवान, लेकिन जनता से जुड़े उम्मीदवार चुनाव जीत जाते हैं।
राजनीतिक दलों को जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने के लिए एक तंत्र बनाना होगा। उन्हें प्रशिक्षण देना, जिम्मेदारियां देना और अंततः उन्हें चुनाव लड़ने का मौका देना आवश्यक है।
जमीनी कार्यकर्ता समाज सेवा के माध्यम से लोगों के दिल में जगह बना सकते हैं। यदि वे स्थानीय मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाएं और उनके समाधान के लिए काम करें, तो वे जनता का समर्थन हासिल कर सकते हैं।
भले ही धनवान और नौकरशाहों की राजनीति में बढ़ती भूमिका एक चिंता का विषय है, लेकिन जमीनी राजनीतिक कार्यकर्ताओं की भूमिका हमेशा महत्वपूर्ण रहेगी। उन्हें खुद को मजबूत करना होगा, जनता से जुड़ाव बनाए रखना होगा और नए तरीकों का इस्तेमाल कर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी। राजनीतिक दलों को भी यह समझना होगा कि उनकी वास्तविक ताकत उनके जमीनी कार्यकर्ताओं में ही निहित है और उन्हें पर्याप्त अवसर दिए जाने चाहिए।
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