अपनी उद्देश्य से भटकती मीडिया! प्रसिद्ध यादव
दुर्भाग्य की बात है कि खोजी पत्रकारिता अब मीडिया के कैनवास से गायब होती जा रही है. कम से कम भारत के बारे में तो इसे सच कहा ही जा सकता है.
चीफ जस्टिस एनवी रमण ने कहा कि पहले अखबार पढ़ते हुए हम बड़े-बड़े घोटालों के उजागर होने की उम्मीद करते थे और समाचार पत्रों ने हमें कभी निराश नहीं किया था. लेकिन हाल के वर्षों में पत्रकारिता का स्वरूप बदल गया है और यह खोजी पत्रकारिता नहीं रही.
चीफ जस्टिस ने कहा कि समाचार पत्रों की रिपोर्टिंग से कई घोटाले और कदाचार को उजागर किया गया, लेकिन आजकल ऐसी खबरें इक्का-दुक्का ही मिलेंगी.
इक्कीसवी सदी के वैज्ञानिक युग में अनेक चैनल दर्शकों को सदियों से चली आ रही रूढ़ियों , ढोंग एवं आडम्बर की विचारधारा से युक्त सामग्री प्रस्तुत करते हैं .कुछ चैनल और समाचार पत्र नित्य रूप से ज्योतिष आधारित भविष्य वाणी जनता के सामने रखते हैं ,तो कहीं पर टेरो कार्ड की चर्चा होती है ,कहीं पर पंडित जी स्वयं आकर अपने अनर्गल उपायों से दर्शकों के भाग्य बदलने का दावा करते हैं ,किसी चैनल पर कोई बाबा टी .वी . दर्शकों पर कृपा बरसाते हुए देखे जाते हैं,चैनल संचालकों को तो सिर्फ आमदनी से मतलब है.जनता में भाग्यवाद को बढ़ावा मिले या ,निश्कर्मन्यता बढे इस बात से चैनल संचालकों का क्या लेना देना ? सारी गलती जनता की है जो ऐसे कार्यक्रम देखती है .क्या मीडिया द्वारा दिखाई जाने वाली दकियानूसी बातों से समाज का भला हो सकता है ? प्रिंट मीडिया भी अपने व्यव्हार में पाक साफ नहीं है ,भविष्यफल दिखाना उनकी भी मजबूरी बनी हुई है .उनके विज्ञापन धोकेबजों के लिए जनता को लूटने का माध्यम बनते हैं.अनेक नीम हाकिम ,अनियमित फायनेंसर ,सर्वे कम्पनिया ,या घटिया उत्पाद बेचने वाले , समाचार पत्रों के विज्ञापनों द्वारा जनता तक पहुँचते हैं और जनता को लूटते हैं .क्या समाचार पत्रों को अपनी कठोर नियमावली बना कर विज्ञापन स्वीकार करने की जिम्मेदारी नहीं निभानी चाहिए ?.ताकि जनता भ्रमित न हो और ठगने से बच सके ?
अक्सर देखने को मिलता है कोई भी घटना या दुर्घटना किसी बड़े नेता .व्यापारी उद्योगपति ,कुबेर पति के साथ घटित होती है तो मीडिया की खबर बनती है .उसे विशेष स्थान मिलता है , प्रत्येक समाचार पत्र ,प्रत्येक चैनल के लिए मुख्य खबर होती है .परन्तु जब कोई आम आदमी या गरीब आदमी पीड़ित होता है तो कोई उसकी आवाज को उठाने वाला नहीं होता .यदि किसी कारण वह खबर बनती भी है तो उसको नाम मात्र की कवरेज या स्थान प्राप्त होता है.जिससे स्पष्ट है की मीडिया में भी धन बल ,और बहु बल का बोलबाला बना रहता है .पूरा मीडिया सत्तासीन नेताओं और धनवानों का भौंपू बन कर रह गया है.क्या साधारण व्यक्ति के दुःख दर्द के प्रति मीडिया की कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ?
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