हवस की आग, खाक में मिला दी जवानी ! /प्रसिद्ध यादव।

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आदमी की सही पहचान नहीं होने से ,दोस्ती होने पर आदमी क्षण भर में ख़ाक में मिल जाता है। पत्रकार विशाल सिन्हा के साथ यही हुआ।दीघा घाट पर राखी बांधने आई छोटी बहन अपने इकलौते भाई को मुखाग्नि दी और एक समाज को आईना दिखाने वाला समाज का प्रहरी पंचतत्व में विलीन हो गया।लोग गमगीन आंखों से अंतिम विदाई दी। गाड़ीखाना खगौल से जब शव उठा और पिता ने जब जवान बेटा को कंधा दिया, पूरा मोहल्ला चीत्कार कर रहा था, लोगों के आंखों में आंसू थे।जिस घर में हिंसा से रक्तरंजित हो उस घर से कभी कोई नाता नहीं रखना चाहिए।जिसके रग रग में हिंसा ,नफ़रत दौड़ती हो,उसकी साया से भी दूर रहना चाहिए।जो अपनी हवस मिटाने के लिए लोकलाज को भूल जाये,उससे दूर रहना चाहिए।विशाल की मौत एक बहुत बड़ी सबक दे गई।जो अपने पति की नही हुई वो दूसरों की क्या हो सकती है, किसी की चिकनी चुपड़ी बातों में आकर ,,रूप सौंदर्य की जाल में फंसकर किसी के सहारा बनकर अपने जीवन को बर्बाद करना ठीक नहीं है।विशाल सिन्हा की मौत को हर बिंदुओं, परिस्थितियों की उच्च स्तरीय जांच होनी चाहिए कि आखिर विशाल की मौत हत्या थी या आत्महत्या!प्रेमिका की उकसावे के कारण उसकी मौत हुई है तो प्रेमिका के अविलम्ब गिरफ्तार कर सारे राज खोलकर सच्चाई दुनिया के सामने आनी चाहिए।

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